देवर से इश्क, गुजारे की जिद: हाईकोर्ट ने पत्नी की याचिका को किया खारिज
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पत्नी के देवर से विवाहेतर संबंध के चलते गुजारा भत्ता बढ़ाने की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने माना कि व्यभिचार में रहने वाली पत्नी गुजारा पाने की हकदार नहीं है।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐसे विवाहेतर संबंध के मामले में हस्तक्षेप करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसने कानूनी और सामाजिक दोनों ही हलकों में बहस छेड़ दी है। अदालत ने पत्नी द्वारा अपने पति से गुजारा भत्ता बढ़ाने की मांग वाली याचिका को सिरे से खारिज कर दिया, क्योंकि जांच में यह पाया गया कि महिला का अपने पति के छोटे भाई, यानी देवर के साथ प्रेम संबंध था। जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की एकल पीठ ने इस मामले में निचली अदालत के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें पति को पत्नी को 4000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।
यह मामला रायपुर की एक फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर पुनरीक्षण याचिकाओं पर आधारित था। पति और पत्नी दोनों ही निचली अदालत के फैसले से असंतुष्ट थे। जहां पति गुजारा भत्ता के भुगतान को पूरी तरह से रोकना चाहता था, वहीं पत्नी चाहती थी कि यह राशि 4000 रुपये से बढ़कर 20000 रुपये प्रतिमाह हो जाए।
सुनवाई के दौरान, पति के वकील ने हाईकोर्ट के समक्ष मजबूत तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि उनकी मुवक्किल की पत्नी गुजारा भत्ता की हकदार नहीं है, क्योंकि उसने न केवल विवाहेतर संबंध स्थापित किए, बल्कि वह भी अपने ही पति के भाई के साथ। वकील ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125(4) का हवाला दिया, जो स्पष्ट रूप से ऐसी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से रोकती है जो व्यभिचार में जी रही है या बिना किसी वैध कारण के अपने पति का घर छोड़ देती है
इसके विपरीत, पत्नी के वकील ने व्यभिचार के आरोपों का खंडन करने की कोशिश की और दलील दी कि 4000 रुपये का गुजारा भत्ता उसकी जरूरतो के लिए पर्याप्त नहीं है, खासकर जब उसकी कोई स्वतंत्र आय नहीं है और पति अच्छी कमाई करता है।
हालांकि, हाईकोर्ट ने पति के तर्कों को स्वीकार करते हुए फैमिली कोर्ट के निष्कर्षों पर सहमति जताई कि पत्नी विवाहेतर संबंध में थी। जस्टिस वर्मा ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि पत्नी, जिसने विवाह के बाद अपने पति के भाई के साथ संबंध बनाए, वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने का अधिकार खो देती है।
इस महत्वपूर्ण फैसले के साथ, हाईकोर्ट ने न केवल पत्नी की गुजारा भत्ता बढ़ाने की याचिका को खारिज कर दिया, बल्कि पति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए निचली अदालत के गुजारा भत्ता के आदेश को भी रद्द कर दिया। यह निर्णय विवाहेतर संबंधों के मामलों में गुजारा भत्ता के दावों के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी precedent स्थापित करता है।