Up News : गाजीपुर में गोवंश तस्करी का खौफनाक तरीका, रेती में जिंदा गाड़कर करते हैं पार

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में पशु तस्करों का हैरान करने वाला तरीका सामने आया है। अमर उजाला की ग्राउंड रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि तस्कर गोवंश को बेहोशी का इंजेक्शन लगाकर गंगा की रेती में जिंदा गाड़ देते हैं, सिर्फ मुंह सांस लेने के लिए बाहर रखते हैं, फिर करते हैं तस्करी।

Up News  : गाजीपुर में गोवंश तस्करी का खौफनाक तरीका, रेती में जिंदा गाड़कर करते हैं पार

 Ghazipur Cow Smuggling : उत्तर प्रदेश में पशु तस्करी पर लगाम लगाने के सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद, तस्करों ने अपनी अवैध कमाई जारी रखने के लिए एक नया और चौंकाने वाला तरीका खोज निकाला है। अमर उजाला की गाजीपुर में की गई ग्राउंड रिपोर्ट ने इस खौफनाक सच का पर्दाफाश किया है।

गाजीपुर के करंडा इलाके में गंगा नदी का दियारा, जो लगभग तीन किलोमीटर लंबा है, तस्करों का नया ठिकाना बन गया है। गुरैनी से गोसंदेपुर उपरवार तक फैले इस क्षेत्र में भीषण गर्मी के कारण गंगा की धारा सिकुड़ रही है, जिससे रेत के बड़े-बड़े टीले उभर आए हैं। इन्हीं टीलों के पास तस्कर अपनी काली करतूत को अंजाम देते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस की सख्ती से बचने के लिए तस्कर गायों, बछड़ों और सांड़ों को बेहोशी का इंजेक्शन लगाते हैं, ताकि वे किसी प्रकार की हरकत न कर सकें। इसके बाद, वे रेत के टीलों के पास गड्ढा खोदकर इन पशुओं को उसमें दबा देते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि पशुओं का सिर्फ मुंह ही रेत से बाहर रखा जाता है, ताकि वे सांस ले सकें। इन टीलों के आसपास बने गड्ढे, घास-फूस के ढेर, खुरों के निशान, ताजा गोबर और चार पहिया वाहनों के टायरों के निशान तस्करी की भयावह कहानी खुद बयां करते हैं।

दिन ढलते ही, नावों और मैजिक जैसे वाहनों के माध्यम से इन बेहोश और जिंदा दफन किए गए पशुओं को बिहार और पश्चिम बंगाल तक पहुंचाया जाता है। करंडा थाना क्षेत्र के चोचकपुर, गोसंदेपुर, धरमरपुर, जमानिया, स्टेशन रोड, नई बाजार, तालसपुर तिराहा होते हुए ककरैत से नुआंव, बिहार तक लगभग 15 किलोमीटर का यह अवैध मार्ग फैला हुआ है। इस रास्ते में गाजीपुर के करंडा और जमानिया थाना क्षेत्र के साथ-साथ चंदौली जिले के कंदवा थाना क्षेत्र की सीमाएं भी पड़ती हैं।

चौंकाने वाला सच यह भी है कि तलासपुर तिराहा से ककरैत तक की लगभग पांच किलोमीटर लंबी सड़क चंदौली और गाजीपुर जिले की सीमा को साझा करती है। तस्कर इसी सीमा विवाद का फायदा उठाते हैं, क्योंकि सीमा निर्धारण स्पष्ट न होने के कारण पुलिस अक्सर इन्हें नहीं रोकती या यूं कहें कि इस इलाके में पुलिस की उपस्थिति ही नगण्य होती है।

ककरैत में कर्मनाशा नदी के पुल के उस पार बिहार के वन विभाग की चेक पोस्ट है, जिससे लगभग 200 मीटर आगे नुआंव में गायों, बछड़ों और सांड़ों को रखा जाता है। यहां मौजूद लोगों का कहना था कि वे व्यापारी हैं और पशु खरीदने आते हैं, जबकि वहां बंधे कमजोर और घायल गोवंश तस्करी की कहानी बयान कर रहे थे। कुछ गायों के कानों पर बीमा कंपनियों द्वारा लगाए गए टैग भी मिले।

तस्करी के इस गोरखधंधे में शामिल रहे बबलू ने बताया कि करंडा से एक पशु को बिहार के मेला क्षेत्र तक पहुंचाने के लिए 3500 रुपये मिलते हैं, और दो पशुओं के लिए सात हजार रुपये तक की कमाई होती है। 24 घंटे में तीन चक्कर तक लगाए जाते हैं। सैदपुर से बिहार तक एक मवेशी पहुंचाने पर 12 से 13 हजार रुपये तक मिल जाते हैं। बिहार के मेलों से ट्रकों में भरकर इन पशुओं को कोलकाता भेजा जाता है। बबलू अब इस धंधे को छोड़कर दूसरा काम कर रहा है, लेकिन उसने तस्करी के इस भयावह तरीके का खुलासा किया।

बिहार में यही पशु 30 से 40 हजार रुपये में बेचे जाते हैं, और आगे उनकी कीमत और बढ़ जाती है। पुलिस से बचने के लिए फर्जी कागजात भी तैयार रखे जाते हैं। जिन थाना क्षेत्रों में सख्ती कम होती है, वहां दिन में भी पशुओं को उठाया जाता है। गहमर क्षेत्र में तो दिनदहाड़े भी तस्करी हो रही है, जहां तस्कर मोटरसाइकिलों से वाहनों के आगे-आगे चलकर पुलिस की लोकेशन बताते हैं और सख्ती होने पर पशुओं को गांवों में छिपा देते हैं।

पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, पूर्वांचल के नौ जिलों में 1564 पशु तस्कर चिह्नित किए गए हैं, जिनमें गाजीपुर में 32 और वाराणसी में एक भी चिह्नित तस्कर नहीं है। हालांकि, जनवरी 2025 से अब तक 371 तस्करों की गिरफ्तारी हुई है, लेकिन इनका सक्रिय नेटवर्क अभी भी बरकरार है।

वाराणसी रेंज के डीआईजी वैभव कृष्ण ने बताया कि सभी थानाध्यक्षों को पशु तस्करों की गिरफ्तारी के साथ-साथ उनके नेटवर्क को खंगालकर मास्टरमाइंड तक पहुंचने और उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई करने के स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। यदि इस धंधे में पुलिस की संलिप्तता पाई जाती है, तो उनके खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

पूर्वांचल में सबसे ज्यादा तस्करी सांड़ों की होती है, जिसके बाद बैल, गाय और बछड़ों का नंबर आता है। तस्कर पशुओं को बेहोश करने के लिए जायलाजीन नामक इंजेक्शन का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी ओवरडोज के कारण कई बार पशुओं की मौत भी हो जाती है। यह इंजेक्शन बाजार में आसानी से उपलब्ध है।

यह ग्राउंड रिपोर्ट गाजीपुर में पशु तस्करी के एक ऐसे घिनौने तरीके को उजागर करती है, जिसमें न केवल कानून का उल्लंघन किया जा रहा है, बल्कि पशुओं के साथ क्रूरता की सभी हदें पार कर दी गई हैं। अब देखना यह है कि पुलिस इस खुलासे के बाद इस संगठित अपराध पर लगाम लगाने के लिए क्या कदम उठाती है।