Indus Water Treaty : पाकिस्तान का पानी रोकना सही कदम? भारत सरकार ने आज सब कुछ साफ-साफ बताया
भारत का पाकिस्तान का पानी रोकना सही कदम? विदेश मंत्रालय ने सिंधु जल संधि निलंबन को सही ठहराया।

Indus Water Treaty : पहलगाम में हुए जघन्य आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फैसले को विदेश मंत्रालय (MEA) ने पूरी तरह से सही ठहराया है। मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पाकिस्तान ने इस महत्वपूर्ण जल संधि की प्रस्तावना में निहित 'सद्भावना और मित्रता' के मूलभूत सिद्धांतों का लगातार उल्लंघन किया है, जिसके कारण यह कदम उठाना पड़ा।
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने संसदीय समिति को इस मामले की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि 1960 की सिंधु जल संधि एक आपसी विश्वास और मैत्रीपूर्ण संबंधों की नींव पर आधारित थी। हालांकि, पाकिस्तान केactions, खासकर सीमा पार आतंकवाद को लगातार बढ़ावा देने के कारण, इन सिद्धांतों को प्रभावी ढंग से दरकिनार कर दिया गया है।
MEA ने यह भी रेखांकित किया कि वर्तमान समय में इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व प्रगति हुई है, जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभाव सामने आ रहे हैं, और हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इन जमीनी हकीकतों में आए व्यापक बदलावों के कारण सिंधु जल संधि की मौजूदा शर्तों पर फिर से विचार करना और बातचीत करना अत्यंत आवश्यक हो गया है, ताकि यह 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप हो सके।
सूत्रों के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पहलगाम हमले में पाकिस्तान की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका और आतंकवाद के खिलाफ भारत के दृढ़ संकल्प से अवगत कराने के लिए 33 देशों की राजधानियों का दौरा कर रहे संसदीय प्रतिनिधिमंडल भी विश्व स्तर पर भारत के इस फैसले का पुरजोर समर्थन करेंगे और यही तर्क रखेंगे। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने अपनी मीडिया ब्रीफिंग में स्पष्ट रूप से कहा था कि 1960 की सिंधु जल संधि की प्रस्तावना स्वयं यह घोषित करती है कि यह 'सद्भावना और मित्रता की भावना' पर आधारित है, जिसका पाकिस्तान ने लगातार उल्लंघन किया है।
मिस्री ने हाल ही में एक संसदीय समिति को 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए बर्बर आतंकवादी हमले के जवाब में भारत द्वारा चलाए गए साहसिक 'ऑपरेशन सिंदूर' सहित अन्य निर्णायक कार्रवाइयों के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी। उन्होंने पाकिस्तान के साथ बढ़े हुए सैन्य तनाव के बाद भारत के स्पष्ट रुख को विश्व स्तर पर समझाने के लिए 33 देशों और यूरोपीय संघ का दौरा कर रहे सात बहुदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडलों के साथ भी गहन चर्चा की थी। सूत्रों के मुताबिक, विदेश मंत्रालय ने समिति को यह भी बताया कि पाकिस्तान संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद से जमीनी परिस्थितियों में आए महत्वपूर्ण परिवर्तनों के मद्देनजर दोनों देशों की सरकारों के बीच इस संधि पर बातचीत के भारत के बार-बार के अनुरोधों में लगातार बाधा डाल रहा है।
क्या तर्क रखा गया?
सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि सिंधु जल संधि पर अब नए सिरे से बातचीत किए जाने की आवश्यकता है ताकि इसे वर्तमान 21वीं सदी के परिदृश्य के लिए उपयुक्त बनाया जा सके, क्योंकि यह संधि 1950 और 1960 के दशक की पुरानी इंजीनियरिंग तकनीकों पर आधारित है। मंत्रालय ने अन्य महत्वपूर्ण बदलावों को भी इंगित किया, जिनमें जलवायु परिवर्तन के व्यापक प्रभाव, ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना, नदियों के पानी की मात्रा में आया महत्वपूर्ण बदलाव, और जनसंख्या में भारी वृद्धि शामिल हैं। मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि इन कारकों के अलावा, स्वच्छ ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता भी संधि के तहत अधिकारों और दायित्वों के निर्धारण पर नए सिरे से बातचीत को अनिवार्य बनाती है।
'जब जमीनी हालात पूरी तरह से बदल गए हों...'
विदेश मंत्रालय ने दृढ़ता से कहा, "संधि की प्रस्तावना स्पष्ट रूप से कहती है कि यह सद्भावना और दोस्ती की भावना पर आधारित है। पाकिस्तान ने इन सभी मूलभूत सिद्धांतों का प्रभावी रूप से उल्लंघन किया है। पाकिस्तान की ओर से सीमा पार से लगातार जारी आतंकवाद हमें संधि के प्रावधानों के अनुसार ईमानदारी से अमल करने से रोकता है।" विदेश मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जब जमीनी हालात पूरी तरह से बदल गए हों, तो संधि को स्थगित रखने का भारत का फैसला स्वाभाविक और पूरी तरह से भारत के अधिकार क्षेत्र में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सिंधु जल संधि को स्थगित करने के इस साहसिक फैसले का पुरजोर समर्थन करते हुए हाल ही में कहा था कि "खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।" भारत सरकार का यह स्पष्ट और दृढ़ रुख पाकिस्तान को आतंकवाद को समर्थन देने की अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए एक कड़ा संदेश है।