कानपुर अग्निकांड: 'बच्चों को बचा लो' चीखें... तीन धमाकों और लपटों से दहला इलाका, इमारत में आई दरार

"कानपुर अग्निकांड: 'बच्चों को बचा लो' चीखें, तीन धमाकों और ऊंची लपटों से दहला इलाका, जूता कारोबारी समेत पूरे परिवार की मौत।"

कानपुर अग्निकांड: 'बच्चों को बचा लो' चीखें... तीन धमाकों और लपटों से दहला इलाका, इमारत में आई दरार

                                                                                     विलाप करते परिजन

कानपुर के चमनगंज इलाके में रविवार रात एक दर्दनाक हादसा हुआ। घनी आबादी वाले प्रेमनगर में एक छह मंजिला इमारत के भूतल में जूते बनाने वाले कारखाने में आग लग गई। आग इतनी तेजी से फैली कि देखते ही देखते ऊंची-ऊंची लपटें उठने लगीं और इमारत में फंसे जूता कारोबारी दानिश, उनकी पत्नी नाजनीन और तीन मासूम बेटियों की जलकर मौत हो गई।

आग लगने के बाद इलाके में अफरा-तफरी मच गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आग लगने के कुछ देर बाद ही बेसमेंट में रखे केमिकल के ड्रमों में एक के बाद एक तीन जोरदार धमाके हुए, जिससे पूरा क्षेत्र दहल उठा। धमाकों के बाद आग ने और भी विकराल रूप ले लिया और लपटें इमारत की आखिरी मंजिल तक पहुंच गईं।

रात गहराते ही एसडीआरएफ की टीम भी बचाव कार्य में जुट गई। आग की प्रचंडता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इमारत में कई जगह दरारें आ गईं थीं। जूतों को चिपकाने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल के जलने से धुंआ इतना दमघोंटू हो गया था कि लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया था।

जाजमऊ निवासी मिस्ताहुल हक इसरत इराकी ने बताया कि बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर उनका भांजा दानिश, उसकी पत्नी नाजनीन और उनकी तीन बेटियां फंसी हुई थीं। दानिश के पिता अकील आग लगने पर किसी तरह नीचे उतर आए थे। अकील ने तुरंत अपने बेटे दानिश को फोन किया। दानिश ने हैलो बोला, लेकिन फिर फोन अचानक बंद हो गया और उसके बाद उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया। बताया जा रहा है कि आग लगने के दौरान दानिश एक बार नीचे उतरकर आया था, लेकिन अपने परिवार को बचाने के लिए वह दोबारा घर के ऊपर भागा और फिर वापस नहीं आ सका।

                                                                            कारखाने में आग लगने के बाद उठीं लपटें

आग बुझाने के दौरान रात करीब 11:30 बजे ऐसा लगा कि आग पर काबू पा लिया गया है, लेकिन अचानक चौथी मंजिल पर आग की लपटें फिर से धधक उठीं। इस दौरान बचाव कार्य में जुटे कर्मियों ने बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाई।

घटना की सूचना मिलते ही महापौर प्रमिला पांडेय और डीसीपी सेंट्रल दिनेश त्रिपाठी भी मौके पर पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। दमकल की 35 गाड़ियां देर रात तक आग बुझाने की कोशिश करती रहीं और सुबह तक आग पर काबू पाया जा सका, लेकिन तब तक पांच अनमोल जिंदगियां राख में तब्दील हो चुकी थीं।

इस दर्दनाक घटना के बाद स्थानीय लोगों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। घनी आबादी वाली संकरी गलियों में इस तरह के कारखानों को चलाने की अनुमति किसने दी? क्या विभागों के अधिकारियों को यह नहीं दिखता कि नीचे कारखाने चल रहे हैं और ऊपर परिवार रह रहे हैं? मानकों को ताक पर रखकर बनाई गई इन छह मंजिला इमारतों के नक्शे कैसे पास हुए? अगर ये अवैध थीं तो इन्हें सील क्यों नहीं किया गया? आग का कारण शॉर्ट सर्किट बताया जा रहा है, तो बिजली विभाग ने कमर्शियल बिजली के इस्तेमाल की अनुमति कैसे दी? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस कारखाने को फायर विभाग से एनओसी कैसे मिली? ये सभी सवाल अब जांच के घेरे में हैं।

कानपुर में हुई इस दर्दनाक घटना ने एक बार फिर घनी आबादी वाले इलाकों में चल रहे अवैध कारखानों और सुरक्षा मानकों की अनदेखी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक परिवार की हंसती-खेलती दुनिया पल भर में राख हो गई और अब पीछे रह गई हैं सिर्फ चीखें और अपनों को खोने का कभी न भरने वाला गम।