Kanpur : मोबाइल की लत से बढ़ रहा 'वर्चुअल ऑटिज्म', GSVM के अध्ययन में खुलासा - बच्चे अपनों से हुए अनजान
कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के एक अध्ययन में सामने आया है कि मोबाइल की अत्यधिक लत के कारण बच्चों में 'वर्चुअल ऑटिज्म' के मामले बढ़ रहे हैं। बच्चे स्क्रीन में व्यस्त रहने से सामाजिकरण में पिछड़ रहे हैं और उनकी सुनने व प्रतिक्रिया देने की क्षमता प्रभावित हो रही है।

Kanpur News : क्या आपका बच्चा भी घंटों मोबाइल स्क्रीन पर चिपका रहता है? अगर हाँ, तो यह खबर आपके लिए चिंताजनक हो सकती है। कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि बच्चों में 'वर्चुअल ऑटिज्म' के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। ये वे बच्चे हैं जो मोबाइल स्क्रीन के आदी हो चुके हैं और परिणामस्वरूप अपने आसपास के लोगों और दुनिया से कटते जा रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता अक्सर बच्चों को रोने या परेशान करने से रोकने के लिए उन्हें फोन दे देते हैं, और खुद भी स्क्रीन में व्यस्त रहते हैं। इसी का दुष्परिणाम है कि बच्चों के मस्तिष्क पर स्क्रीन का प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
GSVM में 100 बच्चों पर हुआ अध्ययन
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग में पिछले एक साल में 2 से 6 साल आयु वर्ग के 100 बच्चों के व्यवहार का गहन अध्ययन किया गया। इन बच्चों को उनके माता-पिता बाल मनोरोग विशेषज्ञ की ओपीडी में लेकर आए थे। विभागाध्यक्ष डॉ. धनंजय चौधरी ने बताया कि इन बच्चों में ऑटिज्म रोग नहीं था, लेकिन उनमें ऑटिज्म जैसे सभी लक्षण मौजूद थे।
बाल मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. कृतिका चावला ने बताया कि वर्चुअल ऑटिज्म के बाल रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन बच्चों की हिस्ट्री से पता चलता है कि माता-पिता उन्हें शांत रखने के लिए फोन देते रहे, जिससे वे स्क्रीन के आदी हो गए।
मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव और सामाजिकरण में बाधा
अध्ययन में सामने आया है कि बच्चे अब सिर्फ मोबाइल स्क्रीन पर जो देखते हैं, उसी पर प्रतिक्रिया देते हैं। अगर घर का कोई सदस्य उन्हें बुलाता है, तो वे गुमसुम रहते हैं जैसे कुछ सुन ही नहीं रहे हों। डॉ. कृतिका चावला ने बताया कि 2 से 6 साल की आयु बच्चे के मस्तिष्क के विकास की सबसे महत्वपूर्ण होती है। इसी उम्र में बच्चे की खान-पान की आदतें बनती हैं, वह भाषा सीखता है और लोगों को प्रतिक्रिया देना सीखता है।
लेकिन, वर्चुअल ऑटिज्म की स्थिति में बच्चे अपने संवेदी (सेंसरी) अंगों का इस्तेमाल बंद कर देते हैं, वे आसपास की चीज़ों से खुद को जोड़ नहीं पाते और उनके मस्तिष्क का विकास एक अलग तरह से होने लगता है। इससे उनकी सामाजिकरण (सोशलाइजेशन) की प्रक्रिया बाधित होने लगती है।
बड़े बच्चों में 'इंटरनेट सिंड्रोम' भी बढ़ रहा
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. आयुषी सिंह ने बताया कि 8 से 16 साल की आयु वर्ग के बच्चों में 'इंटरनेट सिंड्रोम' बढ़ रहा है। छोटी-छोटी रील्स देखने की आदत के कारण बच्चे अब स्कूल में लंबे समय तक व्याख्यान नहीं सुन पाते और किताबों में लंबे अध्याय भी नहीं पढ़ पाते। इससे उनकी कम्युनिकेशन स्किल बाधित हो रही है। साथ ही, उनमें चिड़चिड़ापन और छोटी बात पर अत्यधिक गुस्सा आने जैसे लक्षण भी पैदा हो रहे हैं। रील्स देखने से उनके मस्तिष्क में न्यूरो केमिकल डोपामाइन का अधिक रिसाव होता है, जिससे उन्हें खुशी मिलती है और इसकी लत पड़ जाती है। विभाग में एक साल में ऐसे 50 बच्चों का परीक्षण किया गया है।
बच्चों को स्क्रीन की लत से बचाने के लिए इन बातों का रखें ध्यान:
- बच्चों को मोबाइल फोन न दें, और उनके सामने खुद भी स्क्रीन में ज़्यादा व्यस्त न रहें।
- घर के सदस्य बच्चे से खूब बातें करें, उसे उसकी पसंदीदा चीज़ें दें।
- कोई चीज़ दिखाएं, फिर बच्चे को उसके बारे में बताएं।
- बच्चे को बाहर घुमाने ले जाएं और उसे हमउम्र बच्चों के साथ खेलने के लिए प्रेरित करें।
- बच्चे में अच्छी फूड हैबिट विकसित करें, उसे घर में बनने वाली चीज़ें खिलाएं और उनके बारे में पूछें।
यह रिपोर्ट माता-पिता के लिए एक चेतावनी है कि वे अपने बच्चों को स्क्रीन के अत्यधिक संपर्क से बचाएं ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके।
आप अपने बच्चों को स्क्रीन टाइम से दूर रखने के लिए क्या तरीके अपनाते हैं?