मुगलों का तुर्की कनेक्शन: खून का रिश्ता और तोपों का साथ!

मुगलों और तुर्की का क्या था नाता? क्या सिर्फ इस्लामी भाईचारा था या खून का भी रिश्ता? जानिए, मुगलों ने तुर्की से क्या-क्या मंगाया और कैसे दोनों साम्राज्यों के बीच बने रहे संबंध।

मुगलों का तुर्की कनेक्शन: खून का रिश्ता और तोपों का साथ!

इन दिनों भारत और तुर्की के बीच रिश्तों में कुछ खटास देखने को मिल रही है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि कभी भारत पर राज करने वाले मुगलों का तुर्की से कैसा संबंध था। क्या सिर्फ धर्म का नाता था या इससे भी बढ़कर कोई कनेक्शन था? आइए इतिहास के पन्ने पलटकर इस दिलचस्प रिश्ते की पड़ताल करते हैं।

दरअसल, मुगलों की जड़ें तुर्क और मंगोलों में छिपी हुई हैं। मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर तो तैमूर और चंगेज खान के वंशज थे। तैमूर, जो एक महान तुर्क सेनापति था, बाबर के पिता की ओर से पूर्वज था, जबकि उसकी मां का संबंध मंगोल शासक चंगेज खान के परिवार से था। इस तरह, बाबर के खून में तुर्क और मंगोल दोनों का मिश्रण था। जब जड़ें तुर्क हों, तो तुर्की से नाता होना स्वाभाविक है।

खिलाफत का सम्मान:

मुगल साम्राज्य की शुरुआत में ऑटोमन साम्राज्य (तुर्की) से मुगलों के मामूली रिश्ते थे, लेकिन जैसे-जैसे ऑटोमन साम्राज्य मजबूत होता गया, उनके धार्मिक और राजनीतिक संबंध भी गहरे होते चले गए। एक समय ऐसा भी था जब मुगलों ने ऑटोमन साम्राज्य के शासकों को खलीफा के रूप में मान्यता दी थी। इसे इस्लामी एकता के प्रतीक के तौर पर देखा जाता था।

बाबर, जिसने भारत में मुगल शासन की नींव रखी, पर भी तुर्की का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है। उसने तुर्की, फारसी और भारतीय संस्कृतियों को मिलाकर एक नई राह बनाई। हालांकि बाबर के दरबार की मुख्य भाषा फारसी थी, लेकिन तुर्की भाषा का भी प्रभाव वहां मौजूद था। खुद बाबर की आत्मकथा, 'बाबरनामा' जिसे 'तुजुक-ए-बाबरी' भी कहा जाता है, मूल रूप से चगताई भाषा में लिखी गई थी, जो कि तुर्की की एक विलुप्त होती भाषा है। यह तथ्य मुगलों और तुर्की के गहरे संबंध का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है।

शासन और सेना पर तुर्की का असर:

बाबर के बाद भी मुगल शासकों ने कई मामलों में तुर्की परंपराओं को अपनाया, हालांकि समय के साथ उनमें जरूरी बदलाव भी किए गए। मुगल शासन में मंसबदारी प्रथा, दरबारी तौर-तरीके, जागीरदारी और घुड़सवार सेना जैसे महत्वपूर्ण पहलू तुर्क-मंगोल परंपराओं से प्रभावित थे।

यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि मुगलों ने तुर्की से तोपें मंगवाई थीं, जो उनकी सैन्य शक्ति को बढ़ाने में काफी मददगार साबित हुईं। इसके अलावा, मुगलकालीन इमारतों के गुंबदों और मीनारों की वास्तुकला पर भी तुर्की कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

                               मुगल मूलतः मध्य एशिया के मंगोल और तुर्किक क्षेत्रों की उपज थे

यह सब इसलिए था क्योंकि मुगल मूल रूप से मध्य एशिया के मंगोल और तुर्किक क्षेत्रों से आए थे। भारत में शासन के दौरान उनकी इन जड़ों का प्रभाव हर क्षेत्र में महसूस किया गया। ऑटोमन साम्राज्य और मुगल, दोनों ही इस्लामी मूल्यों की रक्षा और प्रसार के लिए जाने जाते हैं। मुगल सेना के ढांचे में घुड़सवार सेना का मूल विचार भी तुर्की से ही आया था। मुगलों के पहनावे, चित्रकला, संगीत और वास्तुकला पर भी तुर्की और फारसी कला का गहरा प्रभाव था।

हालांकि, मुगल और ऑटोमन साम्राज्य के बीच किसी बड़ी राजनीतिक या सैन्य साझेदारी के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलते हैं, लेकिन औरंगजेब के शासनकाल से पहले तक के सभी मुगल शासकों ने ऑटोमन साम्राज्य के साथ औपचारिक रूप से संबंध बनाए रखा था। वे उन्हें इस्लाम के संरक्षक के रूप में सम्मान देते थे।

बाबर के पिता उमर शेख मिर्जा तैमूर लंग के वंशज थे और फरगना घाटी पर शासन करते थे, जो आज उज्बेकिस्तान का हिस्सा है। बाबर को शासन और साम्राज्य विस्तार की सीख अपने पिता से मिली थी, जबकि उनकी मां कुतलुग निगार खान चंगेज खान के वंश से थीं। इस प्रकार, मुगल और तुर्की की जड़ें आपस में गहराई से जुड़ी हुई थीं, और किसी न किसी रूप में वे एक ही सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा थे।