Operation Sindoor : ऑपरेशन सिंदूर ने रूल बुक तो बदल दी, लेकिन परमाणु प्रतिरोध कम नहीं हुआ
ऑपरेशन सिंदूर ने रूल बुक तो बदल दिया, लेकिन परमाणु प्रतिरोध कम नहीं हुआ।

Operation Sindoor : नई दिल्ली स्थित कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के अंकित पांडा ने अपनी नई किताब 'द न्यू न्यूक्लियर एज: एट द प्रेसिपिस ऑफ आर्मागेडन' में परमाणु हथियारों के बढ़ते खतरे पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि आज की दुनिया में परमाणु युद्ध का जोखिम शीत युद्ध के मुकाबले कहीं अधिक जटिल और बहुआयामी हो गया है।
पांडा ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव, चीन के तेजी से विस्तारित हो रहे परमाणु शस्त्रागार और गैर-परमाणु देशों द्वारा भी परमाणु युद्ध शुरू करने की अप्रत्याशित संभावनाओं पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने विशेष रूप से भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' के संदर्भ में कहा कि यह ऑपरेशन पाकिस्तान को परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने से पूरी तरह रोकने में सफल नहीं हुआ है। इसके साथ ही, उन्होंने परमाणु हथियारों के उपयोग को लेकर वैश्विक नेताओं के निर्णय लेने की प्रक्रियाओं पर भी गहरी चिंता जताई है।
अपनी किताब के शीर्षक की व्याख्या करते हुए पांडा ने कहा कि शीत युद्ध के दौरान परमाणु युद्ध का खतरा हमेशा मंडराता रहता था, जब अमेरिका और सोवियत संघ के पास परमाणु हथियारों का विशाल भंडार था। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद ऐसा लगा था कि परमाणु हथियारों की आवश्यकता कम हो जाएगी और दोनों महाशक्तियों ने अपने परमाणु हथियारों की संख्या में कमी भी की थी। हालांकि, अब स्थिति नाटकीय रूप से बदल गई है। आज दुनिया में कई ऐसे देश हैं जिनके पास परमाणु हथियार हैं, जिससे खतरा पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है। पांडा ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि आज दुनिया में 70,000 से अधिक परमाणु हथियार नहीं हैं, बल्कि लगभग 13,000 हथियार मौजूद हैं। फिर भी, परमाणु युद्ध का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप, व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग में से कौन सबसे बड़ा खतरा?
पांडा का मानना है कि सबसे बड़ी चिंता यह है कि अधिकांश परमाणु हथियार संपन्न देशों में परमाणु युद्ध शुरू करने का अंतिम अधिकार एक ही व्यक्ति के पास केंद्रित होता है। ऐसी स्थिति में, उस व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी एक संभावित खतरे का कारण बन सकता है। पांडा ने उन देशों को लेकर अधिक आशंका व्यक्त की जिनके पास अपेक्षाकृत कम परमाणु हथियार हैं। उनका तर्क है कि ऐसे देश पारंपरिक हथियारों के मामले में कमजोर होने पर परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल कर सकते हैं। पाकिस्तान और उत्तर कोरिया इस श्रेणी में आते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर: क्या बदला भारत-पाकिस्तान का समीकरण?
भारत का ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तान को एक स्पष्ट संदेश था कि वह अपनी परमाणु क्षमता को एक अजेय ढाल के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकता। पांडा के अनुसार, इस ऑपरेशन ने भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य के संकटों के लिए एक नई 'रूल बुक' तैयार की है। भारत ने हवाई शक्ति और सटीक हथियारों का उपयोग करके अपनी पुरानी रणनीति को त्याग दिया, जो मुख्य रूप से जमीनी सेनाओं पर निर्भर थी। यह दर्शाता है कि भारत परमाणु छत्र के नीचे बड़े जोखिम लेने के लिए तैयार है, लेकिन उसने पाकिस्तान की 'रेड लाइंस' का उल्लंघन नहीं किया, जिससे परमाणु खतरा टल गया।
ट्रंप का दावा: परमाणु युद्ध टला या बढ़ा खतरा?
पांडा का मानना है कि जब भी दो परमाणु हथियार वाले देश आपस में संघर्ष करते हैं, तो परमाणु युद्ध का खतरा स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही तनाव को कम करने के प्रयास किए और किसी भी देश ने जानबूझकर आम नागरिकों को निशाना नहीं बनाया। पांडा ने यह भी कहा कि यदि अमेरिका इस मामले में शामिल नहीं होता, तो शायद स्थिति और भी बिगड़ सकती थी। भारत भले ही पाकिस्तान के साथ अपने द्विपक्षीय मुद्दों को स्वयं हल करना चाहता है, लेकिन उसने हमेशा अमेरिका को तनाव कम करने में मध्यस्थता करने की अनुमति दी है।
चीन का बढ़ता शस्त्रागार क्या भारत के लिए चुनौती?
भारत की परमाणु नीति 'पहले इस्तेमाल नहीं' (No First Use) के सिद्धांत पर आधारित है, जो इस बात पर टिकी है कि यदि उस पर हमला होता है तो वह जवाबी हमला करने में सक्षम है। हालांकि, चीन तेजी से नई सैन्य प्रौद्योगिकियों का विकास कर रहा है, जिससे भारत के लिए यह प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखना मुश्किल हो सकता है। चीन मिसाइल डिफेंस सिस्टम और अत्यधिक सटीक हथियारों का विकास कर रहा है, जिससे वह संभावित रूप से भारत के परमाणु हथियारों को नष्ट कर सकता है। पांडा के अनुसार, भारत को इस खतरे से निपटने के लिए या तो अपने परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ानी होगी या फिर अपनी मिसाइलों की सटीकता और मारक क्षमता को बेहतर बनाना होगा, जिसमें दूसरा विकल्प अधिक व्यावहारिक है।
क्या गैर-परमाणु देश भी बढ़ा सकते हैं खतरा?
पांडा ने एक चौंकाने वाली संभावना जताई कि एक गैर-परमाणु देश भी परमाणु युद्ध शुरू करने का अप्रत्यक्ष कारण बन सकता है। उन्होंने दक्षिण कोरिया का उदाहरण दिया, जिसके पास परमाणु हथियार नहीं हैं, लेकिन वह उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों को नष्ट करने की इच्छा रखता है। ऐसा करने से उत्तर कोरिया को अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। पांडा के अनुसार, इस तरह गैर-परमाणु देश भी अनजाने में परमाणु युद्ध को बढ़ावा दे सकते हैं।
अंकित पांडा की यह किताब परमाणु हथियारों के वर्तमान परिदृश्य की जटिलताओं और बढ़ते खतरों पर एक गंभीर चिंतन प्रस्तुत करती है, जो वैश्विक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।