मिडिल ईस्ट का उबाल, रुपये पर मार: क्यों फिसला भारतीय मुद्रा का भाव?
मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के कारण रुपये में गिरावट। आयातकों की डॉलर मांग भी एक कारण।
बुधवार को भारतीय रुपया सीमित दायरे में कारोबार करता रहा, लेकिन अंततः एक पैसे की मामूली गिरावट के साथ डॉलर के मुकाबले 85.59 (अनंतिम) पर बंद हुआ। इस गिरावट की मुख्य वजह आयातकों और विदेशी बैंकों द्वारा डॉलर की लगातार मांग और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आई उछाल रही।
विदेशी मुद्रा व्यापारियों के अनुसार, अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड में हो रही वृद्धि और विदेशी निवेशकों द्वारा लगातार पूंजी निकाले जाने के दबाव ने बाजार की धारणा को कमजोर किया। एशियाई बाजारों में, भारत को छोड़कर लगभग सभी देशों की मुद्राओं ने डॉलर के मुकाबले मजबूती दिखाई, जबकि भारतीय रुपया दबाव में रहा।
विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये में गिरावट का सबसे बड़ा कारण मिडिल ईस्ट में बढ़ता हुआ भू-राजनीतिक तनाव है। इस तनाव के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई है, जिसका सीधा नकारात्मक असर भारतीय रुपये पर पड़ा है। भारत अपनी तेल जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है, इसलिए कीमतों में वृद्धि से रुपये पर दबाव बढ़ना स्वाभाविक है। इसके अतिरिक्त, विदेशी मुद्रा व्यापारियों द्वारा डॉलर की मांग में वृद्धि भी रुपये पर दबाव बनाने वाला एक महत्वपूर्ण कारक रहा। जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में भी रुपये पर दबाव बना रह सकता है, खासकर यदि मिडिल ईस्ट में तनाव कम नहीं होता है और कच्चे तेल की कीमतें ऊंची बनी रहती हैं।
हालांकि, कुछ सकारात्मक पहलू भी रहे जिन्होंने रुपये की गिरावट को सीमित किया। घरेलू शेयर बाजार में बुधवार को अच्छी तेजी देखने को मिली और अमेरिकी डॉलर इंडेक्स में कमजोरी भी रही, जिसने रुपये को कुछ सहारा दिया। इंटरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 85.65 पर खुला और दिन के कारोबार में डॉलर के मुकाबले 85.53 के उच्च स्तर और 85.70 के निचले स्तर तक गया। अंततः, यह एक पैसे की मामूली गिरावट के साथ 85.59 (अनंतिम) पर बंद हुआ। मंगलवार को भी रुपये में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 16 पैसे की गिरावट दर्ज की गई थी, जिससे दो दिनों में कुल गिरावट 17 पैसे हो गई है।
मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी का मानना है कि आयातकों की डॉलर के लिए लगातार मांग और मिडिल ईस्ट में भू-राजनीतिक तनाव के कारण रुपये में नकारात्मक रुझान बना रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें रुपये पर और दबाव डाल सकती हैं। हालांकि, चौधरी ने यह भी उम्मीद जताई कि ट्रेड वॉर की आशंका कम होने के बीच वैश्विक बाजारों में जोखिम लेने की प्रवृत्ति बढ़ने से रुपये को कुछ समर्थन मिल सकता है। उनका अनुमान है कि डॉलर-रुपये का हाजिर भाव 85.40 से 86 के बीच कारोबार कर सकता है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में, डॉलर की मजबूती का आकलन करने वाला डॉलर इंडेक्स 0.46 प्रतिशत की गिरावट के साथ 99.66 पर कारोबार कर रहा था। वहीं, बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड ऑयल 1.04 प्रतिशत बढ़कर 66.06 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। घरेलू शेयर बाजार में, 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 410.19 अंक या 0.51 प्रतिशत बढ़कर 81,596.63 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 129.55 अंक या 0.52 प्रतिशत बढ़कर 24,813.45 पर पहुंच गया। एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने मंगलवार को शुद्ध आधार पर 10,016.10 करोड़ रुपये की इक्विटी बेची, जो रुपये पर दबाव का एक और कारण हो सकता है।
कुल मिलाकर, मिडिल ईस्ट में जारी तनाव और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी भारतीय रुपये के लिए एक चुनौती बनी हुई है। हालांकि, घरेलू बाजार की मजबूती और डॉलर इंडेक्स में कमजोरी रुपये को पूरी तरह से गिरने से रोक रही है। आने वाले दिनों में रुपये की चाल वैश्विक भू-राजनीतिक घटनाक्रमों और कच्चे तेल की कीमतों पर निर्भर करेगी।