भारत-तालिबान-ईरान का त्रिकोण: व्यापार की नई राह, चीन की बेचैनी, पाकिस्तान की हैरानी!

पाकिस्तान से बिगड़ते संबंधों के बीच तालिबान का भारत और ईरान के साथ व्यापारिक गठजोड़, चाबहार बंदरगाह बनेगा नया व्यापार मार्ग, चीन और पाकिस्तान चिंतित।

भारत-तालिबान-ईरान का त्रिकोण: व्यापार की नई राह, चीन की बेचैनी, पाकिस्तान की हैरानी!

पाकिस्तान के साथ लगातार बिगड़ते रिश्तों और भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के माहौल में, तालिबान ने भारत से दोस्ती को एक नया महत्व देना शुरू कर दिया है। अफगानिस्तान में सत्ता चला रहे तालिबान ने अब व्यापार के लिए पाकिस्तानी बंदरगाहों पर अपनी निर्भरता कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।

तालिबान अपने वैश्विक व्यापार को और सुगम बनाने के लिए भारत की ओर तेजी से रुख कर रहा है, खासकर तब जब इस्लामाबाद के साथ उसके संबंध लगातार खटास भरे होते जा रहे हैं और नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच भी रिश्ते नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। इकोनॉमिक टाइम्स (ET) की एक रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान शासन ने व्यापारिक गतिविधियों के लिए पाकिस्तानी बंदरगाहों पर अपनी निर्भरता कम करने के उद्देश्य से ईरान के चाबहार बंदरगाह पर अपना ध्यान केंद्रित करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। यह बंदरगाह भारत द्वारा प्रबंधित किया जाता है और अफगानिस्तान अब अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) में शामिल होने की संभावनाओं को भी सक्रिय रूप से तलाश रहा है।

भारत-तालिबान-ईरान: व्यापार का नया समीकरण:

2021 में तालिबान के काबुल में सत्ता में लौटने के बाद चाबहार के साथ सहयोग में कई चुनौतियां आईं। लेकिन जैसे-जैसे काबुल और इस्लामाबाद के बीच मतभेद गहराते गए, जिसमें अफगान शरणार्थियों की बेदखली का मुद्दा भी शामिल था, तालिबान ने स्वाभाविक रूप से ईरान और भारत के साथ सहयोग की ओर अपना रुख मोड़ लिया। चाबहार के साथ अफगानिस्तान की यह नई दोस्ती उसकी विदेश नीति में विविधता लाने और पाकिस्तान पर अपनी अत्यधिक निर्भरता को कम करने के एक स्पष्ट प्रयास का संकेत देती है। चाबहार बंदरगाह रणनीतिक रूप से ईरान, भारत और अफगानिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग के रूप में उभर सकता है।

इतना ही नहीं, तालिबान के उच्च अधिकारी इस महत्वपूर्ण परियोजना में काबुल की संभावित भूमिका पर विस्तृत चर्चा करने के लिए हाल ही में तेहरान का दौरा भी कर चुके हैं। रूस के एक शीर्ष थिंक टैंक, वल्दाई क्लब, जो क्रेमलिन के साथ अपने मजबूत और विशेष संबंधों के लिए जाना जाता है, के अनुसार, तालिबान चाबहार बंदरगाह परियोजना में अपनी भूमिका को बढ़ाकर पाकिस्तान को एक स्पष्ट संदेश देने की कोशिश कर रहा है - कि अब वह इस्लामाबाद पर पूरी तरह से निर्भर नहीं रहेगा।

ईरान की नजरें INSTC पर:

वहीं, ईरान भी अपनी क्षेत्रीय स्थिति को और मजबूत करने के व्यापक उद्देश्य के साथ अफगानिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) से जोड़ने के लिए उत्सुक है। भारत और ईरान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) के बीच रविवार को हुई महत्वपूर्ण फोन वार्ता के दौरान INSTC का मुद्दा प्रमुखता से उठा। इससे पहले, पिछले हफ्ते, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी के बीच हुई टेलीफोनिक बातचीत 1999 के बाद से किसी भारतीय और तालिबानी मंत्री के बीच पहली उच्च-स्तरीय सीधी बातचीत थी, जो क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक बड़े बदलाव और मंथन का स्पष्ट संकेत देती है।

भारत, तालिबान और ईरान के बीच यह बढ़ता हुआ व्यापारिक और रणनीतिक तालमेल निश्चित रूप से क्षेत्रीय समीकरणों को नया रूप दे सकता है। जहां एक ओर यह त्रिपक्षीय सहयोग व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देगा, वहीं दूसरी ओर यह शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) जैसे मंचों पर चीन की भूमिका और पाकिस्तान की क्षेत्रीय रणनीति के लिए नई चुनौतियां और अनिश्चितताएं पैदा कर सकता है। पाकिस्तान के लिए यह घटनाक्रम निश्चित रूप से हैरानी भरा होगा, क्योंकि अफगानिस्तान लंबे समय से उसकी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। अब देखना यह है कि इस नए भू-राजनीतिक परिदृश्य में कौन सा देश किस तरह से अपनी रणनीति को समायोजित करता है।