सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को त्वरित और प्रभावी न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जिला और तालुका स्तर पर सुरक्षा अधिकारियों की नियुक्ति सुनिश्चित करें।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस संबंध में आदेश जारी करते हुए कहा, "हम सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देते हैं कि वे जिला और तालुका स्तर पर महिला एवं बाल विकास विभाग में अधिकारियों की पहचान करें और उन्हें सुरक्षा अधिकारी के रूप में नामित करें। ये सुरक्षा अधिकारी अधिनियम की धारा-9 के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे।"
कोर्ट ने आगे कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और महिला एवं बाल/समाज कल्याण विभागों के सचिवों को आपस में समन्वय स्थापित कर यह सुनिश्चित करना होगा कि अधिनियम के तहत अधिकारियों को संरक्षण अधिकारी के रूप में नामित किया जाए। इसके साथ ही, उन्हें अधिनियम के बारे में जागरूकता बढ़ाने, सेवाओं के प्रभावी समन्वय और इसके प्रावधानों को लागू करने के लिए मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार करना होगा, जैसा कि धारा 11 में उल्लिखित है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह प्रक्रिया आज से छह सप्ताह के भीतर उन सभी क्षेत्रों में पूरी की जानी चाहिए, जहां अभी तक संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति नहीं हुई है। इसके अतिरिक्त, राज्यों को संकटग्रस्त महिलाओं के लिए सेवा प्रदाताओं, सहायता समूहों और आश्रय गृहों की उपलब्धता भी सुनिश्चित करनी होगी। कोर्ट ने इस उद्देश्य के लिए आश्रय गृहों की पहचान करने के भी निर्देश दिए हैं। हालांकि, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध होने के कारण, न्यायालय ने इस संबंध में कोई विशेष निर्देश जारी करना आवश्यक नहीं समझा।
पीठ ने केंद्र सरकार को भी अधिनियम की धारा 11 के क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त कदम उठाने का निर्देश दिया। इसके अलावा, कोर्ट ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के सदस्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों के सदस्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने के लिए सूचित करें कि जिला और तालुका स्तर पर महिलाओं को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मुफ्त कानूनी सहायता और सलाह के उनके अधिकार के बारे में जानकारी दी जाए। सभी सदस्य सचिवों को इन प्रावधानों का पर्याप्त प्रचार करने और कानूनी सहायता या सलाह के लिए संपर्क करने वाली महिलाओं को शीघ्रता से सहायता प्रदान करने का भी निर्देश दिया गया है, क्योंकि अधिनियम प्रत्येक महिला को मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है।