टाटा अधिकारियों को हितों के टकराव मामले में मिली बड़ी राहत
टाटा समूह के कुछ अधिकारियों को हितों के टकराव के मामले में बड़ी राहत मिली है। कंपनी सचिव सुप्रकाश मुखोपाध्याय को बोर्ड ने क्लीन चिट दी, जबकि अन्य अधिकारियों पर भी कोई जानबूझकर उल्लंघन नहीं पाया गया।

टाटा समूह के कंपनी सचिव सुप्रकाश मुखोपाध्याय और समूह के कुछ अन्य अधिकारियों को बड़ी राहत मिली है। टाटा संस के बोर्ड ने एक आंतरिक रिपोर्ट की समीक्षा के बाद मुखोपाध्याय को हितों के टकराव के आरोपों से मुक्त कर दिया है। यह रिपोर्ट उनके परिवार के स्वामित्व वाली वित्तीय सेवा फर्म, डिविनियन एडवाइजरी सर्विसेज के साथ उनकी भागीदारी से संबंधित थी।
बोर्ड ने रिपोर्ट पर विस्तार से चर्चा की और पाया कि मुखोपाध्याय ने टाटा संस के भीतर उचित अधिकारियों के सामने आवश्यक खुलासे नहीं किए थे। हालांकि, बोर्ड ने यह निष्कर्ष निकाला कि ऐसा जानबूझकर नियमों का उल्लंघन करने या व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के गलत इरादे से नहीं किया गया था।
यह मामला तब सामने आया जब यह पता चला कि टाटा के कुछ अधिकारियों ने डिविनियन में निवेश किया था, जिसके मालिक मुखोपाध्याय की पत्नी और दो बेटियां हैं। डिविनियन 90 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति का प्रबंधन करती है और डिविनियन अल्टरनेटिव इंडिया फंड (DAIF) को प्रायोजित करती है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि डिविनियन की टीम में ऐसे लोग शामिल हैं जो पहले टाटा समूह में काम कर चुके हैं या उससे लंबे समय से जुड़े रहे हैं, जिनमें टीसीएस के पूर्व सीएफओ एस महालिंगम और टाटा एसेट मैनेजमेंट के पूर्व सीओओ होर्मुज बुलसारा शामिल हैं।
टाटा कोड ऑफ कंडक्ट के अनुसार, हितों का टकराव तब होता है जब कोई कर्मचारी अपने या अपने परिवार के सदस्यों के लिए अनुचित लाभ प्राप्त करता है और इसे प्रबंधन के सामने प्रकट नहीं करता है। सूचीबद्ध कंपनियों के लिए, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ऐसे मामलों का खुलासा न करने पर जुर्माना भी लगा सकता है।
हालांकि, इस मामले में, टाटा संस के बोर्ड ने मुखोपाध्याय के स्पष्टीकरण और आंतरिक जांच के निष्कर्षों को स्वीकार करते हुए उन्हें किसी भी जानबूझकर कदाचार से मुक्त कर दिया है। यह निर्णय टाटा समूह के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जो अपनी नैतिकता और कॉर्पोरेट प्रशासन के उच्च मानकों के लिए जाना जाता है।