भारत-पाक तनाव के बीच अमेरिका-चीन की 'टैरिफ डील': 90 दिनों के लिए शुल्क घटाने पर सहमति
भारत-पाकिस्तान में तनाव के बीच चीन और अमेरिका ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए 90 दिनों के लिए टैरिफ घटाने पर सहमति जताई है। जानें इस बड़े फैसले के मायने।

अमेरिका चीन व्यपारिक समझौता - फोटो : सम्पन्न भारत न्यूज़
एक तरफ भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव बरकरार है, वहीं दूसरी तरफ वैश्विक अर्थव्यवस्था के दो बड़े खिलाड़ी - अमेरिका और चीन - ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय आर्थिक और व्यापारिक संबंधों की अहमियत को समझते हुए टैरिफ के मोर्चे पर नरमी बरतने का फैसला किया है। सोमवार को जारी एक संयुक्त बयान के अनुसार, अमेरिका और चीन शुरुआती तौर पर 90 दिनों के लिए एक-दूसरे के सामानों पर लगाए गए अतिरिक्त शुल्क को वापस लेंगे।
इस समझौते के तहत, चीन अमेरिकी वस्तुओं पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाएगा, जबकि अमेरिका चीनी वस्तुओं पर लगभग 30 प्रतिशत तक शुल्क वसूलेगा। यह कदम ऐसे समय में आया है जब वैश्विक स्तर पर आर्थिक अनिश्चितता का माहौल है और भारत-पाक तनाव ने भी चिंताएं बढ़ा दी हैं।
संयुक्त बयान में क्या कहा गया?
अमेरिका और चीन की ओर से जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि दोनों देश एक स्थायी, दीर्घकालिक और पारस्परिक रूप से लाभकारी आर्थिक और व्यापारिक संबंधों के महत्व को समझते हैं। हालिया चर्चाओं के बाद, दोनों पक्षों ने माना कि निरंतर बातचीत से उनके आर्थिक और व्यापारिक संबंधों में एक-दूसरे की चिंताओं को दूर किया जा सकता है। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए, दोनों देश आर्थिक और व्यापारिक संबंधों पर चर्चा जारी रखने के लिए एक तंत्र स्थापित करेंगे।
बातचीत के लिए अधिकारियों की टीम:
इस व्यापारिक चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए दोनों देशों ने अपने प्रमुख अधिकारियों की सूची भी जारी की है। चीनी पक्ष का प्रतिनिधित्व स्टेट काउंसिल के वाइस प्रीमियर हे लिफेंग करेंगे, जबकि अमेरिकी पक्ष का प्रतिनिधित्व ट्रेजरी के सचिव स्कॉट बेसेंट और यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव जैमीसन ग्रीर करेंगे। यह भी तय हुआ है कि ये चर्चाएं बारी-बारी से चीन और अमेरिका में आयोजित की जा सकती हैं, या दोनों पक्षों की सहमति से किसी तीसरे देश में भी हो सकती हैं। आवश्यकतानुसार, दोनों पक्ष प्रासंगिक आर्थिक और व्यापारिक मुद्दों पर कार्य-स्तरीय परामर्श भी कर सकते हैं।
पहले भी टैरिफ टाल चुका है अमेरिका:
यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने टैरिफ के मुद्दे पर नरमी दिखाई है। इससे पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उन देशों पर पारस्परिक शुल्क लगाए थे जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा था। बाद में, कई देशों द्वारा व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू करने के बाद, उन्होंने 90 दिनों के लिए शुल्क रोकने का फैसला किया था। उस दौरान, सभी देशों पर 10 प्रतिशत का बेसलाइन शुल्क लगाया गया था। चीन के लिए, ट्रम्प ने शुल्क को 245 प्रतिशत तक बढ़ाने के संकेत दिए थे, जबकि अमेरिका पर चीनी शुल्क 125 प्रतिशत थे।
राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल में भी टैरिफ पारस्परिकता पर अपना रुख दोहराया था और संकेत दिया था कि अमेरिका निष्पक्ष व्यापार सुनिश्चित करने के लिए अन्य देशों द्वारा लगाए गए शुल्कों का मिलान करेगा।
वैश्विक बाजार पर क्या होगा असर?
अमेरिका और चीन की इस घोषणा का वैश्विक बाजारों पर सकारात्मक असर देखने को मिला है। एशियाई बाजारों में तेजी आई, और अमेरिकी वायदा बाजार में भी मजबूती दर्ज की गई। हांगकांग के हैंग सेंग सूचकांक में करीब 3 प्रतिशत की उछाल आई, जबकि जर्मनी और फ्रांस के बेंचमार्क सूचकांकों में भी तेजी देखी गई।
ट्रम्प प्रशासन ने दुनिया भर के देशों पर टैरिफ लगाए थे, लेकिन चीन के साथ उनका व्यापार युद्ध सबसे तीखा रहा है। चीन से आने वाले सामानों पर 20 प्रतिशत का आयात शुल्क लगाया गया था, जिसका उद्देश्य बीजिंग पर सिंथेटिक ओपिओइड फेंटेनाइल के प्रवाह को रोकने के लिए दबाव डालना था। इसके अलावा, पहले के टैरिफ को मिलाकर कुछ चीनी वस्तुओं पर कुल टैरिफ 145 प्रतिशत से भी अधिक हो सकता था।
भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण स्थिति के बीच अमेरिका और चीन का यह कदम वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक राहत की सांस लेकर आया है। हालांकि यह समझौता केवल 90 दिनों के लिए है, लेकिन यह दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच बातचीत और सुलह की उम्मीद जगाता है। देखना होगा कि यह अल्पकालिक राहत दीर्घकालिक व्यापारिक संबंधों में किस तरह का बदलाव लाती है।