Mothers day: धूप में छांव सरीखी, मुश्किल में अवतार सी है मेरी मां... एक एहसास जो हर संकट में बढ़ा देता है विश्वास

मां की नींद, भूख, आराम सब बच्चे की हंसी पर कुर्बान। कामकाजी मां का अथक सफर, जानें उनकी रोजमर्रा की जिंदगी के संघर्ष और प्यार भरी कहानियां।

Mothers day: धूप में छांव सरीखी, मुश्किल में अवतार सी है मेरी मां... एक एहसास जो हर संकट में बढ़ा देता है विश्वास

Mothers day: "मेरी मां... बस एक छोटा सा शब्द, लेकिन इसमे समाया है अनंत प्यार, अपनापन और बलिदान। मां सिर्फ एक रिश्ता नहीं, वो एक पूरी दुनिया है। एक ऐसा एहसास जो हर दर्द को मुस्कान में बदल देता है। तपती दोपहरी में मां छांव सरीखी है और हर मुश्किल घड़ी में अवतार जैसी लगती है।" यह पंक्तियाँ हर उस मां के त्याग और समर्पण को दर्शाती हैं, जिसका जीवन अपने बच्चों के इर्द-गिर्द घूमता है। मां की नींद, उसकी भूख, उसका आराम सब कुछ उसकी संतान की एक हंसी पर न्योछावर है। चाहे वह अस्पताल की कठिन ड्यूटी हो, दुकान की व्यस्तता हो या क्लासरूम की जिम्मेदारी, हर मां के दिल का एक कोना हमेशा अपने प्यारे बच्चे के लिए धड़कता रहता है। और जब एक कामकाजी मां होती है, तो यह सफर और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

कामकाजी मां के लिए हर दिन एक जंग की तरह होता है। सुबह घर के कामों को निपटाना, बच्चे को तैयार करना, फिर दफ्तर की जिम्मेदारी निभाना और शाम को वापस आकर फिर से घर की देखभाल करना - यह एक थका देने वाली दिनचर्या है। लेकिन, काम से वापस आने के बाद शाम को जब बच्चा दौड़कर उनकी गोद में आता है, तो वही एक पल उनकी सारी थकान और संघर्ष को पल भर में सुकून से भर देता है। मां के बिना यह संसार वास्तव में अधूरा है, क्योंकि मां ही वह शक्ति है जो हमें हर हाल में संभालना जानती है। मातृ दिवस के अवसर पर, कुछ ऐसी ही कामकाजी महिलाओं से बातचीत की गई, जिन्होंने अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के संघर्षों और खुशियों को साझा किया।

मां की नींद नहीं, उसका सपना है बच्चा:

डॉ. अंकिता गुप्ता जीटीबी अस्पताल में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं, लेकिन उनकी असली परीक्षा अस्पताल से बाहर घर पर शुरू होती है। पांच माह का एक नन्हा बच्चा और तीन साल का एक नटखट बेटा - इन दोनों की देखभाल के बीच उनकी रातें अक्सर नींद से वंचित रह जाती हैं। डॉ. अंकिता बताती हैं कि कभी-कभी तो उन्हें सिर्फ चार घंटे की नींद ही मिल पाती है। लेकिन, वह मुस्कुराकर कहती हैं कि अपने दोनों बेटों की मुस्कान देखते ही और उन्हें गोद में लेते ही उनकी सारी थकान और घर से लेकर अस्पताल तक के संघर्ष दूर हो जाते हैं। उनका छोटा बेटा रात में कई बार रोता है, उसे सुलाना और फिर सुबह की ड्यूटी पर जाना आसान नहीं है, लेकिन जब घरवाले साथ देते हैं तो यह मुश्किल भी आसान हो जाती है। मां होने का अर्थ उनके लिए सिर्फ प्यार देना नहीं है, बल्कि हर दिन खुद को भुलाकर अपने बच्चों की दुनिया को संवारना है।

मां की बांहें उसके बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित जगह:

निशा पाल एक शिक्षिका हैं और चार साल के एक प्यारे से बच्चे की मां भी हैं। हर सुबह जब वह स्कूल के लिए निकलती हैं, तो उनका बेटा खिड़की से दूर तक उन्हें जाते हुए देखता रहता है। दादा-दादी उसकी देखभाल करते हैं, लेकिन मां की कमी उसे हर पल महसूस होती है। वह दिनभर अपनी मां के लौटने का इंतजार करता है, छोटी-सी कॉपी और पेंसिल लेकर बैठा रहता है कि कब उसकी मां आएंगी और वे साथ में होमवर्क करेंगे। हर आवाज पर वह दरवाजे की ओर भागता है, और जब निशा घर लौटती हैं, तो उनका बच्चा दौड़कर उनकी बाहों में लिपट जाता है, मानो पूरे दिन की बेचैनी उस एक पल में सिमट जाती हो। मां और बच्चे का यह अटूट रिश्ता शब्दों से परे है, इसे सिर्फ दिल से ही महसूस किया जा सकता है।

मां की दुनिया में बसती है उसके बच्चे की मुस्कान:

अंतिमा एक आई शॉप में कार्यरत हैं और दो साल के एक प्यारे से बच्चे की मां हैं। हर सुबह जब वह काम पर निकलती हैं, तो उनका दिल वहीं घर के दरवाजे पर ठहर जाता है, जहां उनका बच्चा हाथ हिलाकर उन्हें अलविदा कहता है। उन्हें इस बात का सुकून है कि उनके बच्चे की देखभाल उसके दादा और पिता मिलकर पूरी जिम्मेदारी से करते हैं। वे समय-समय पर उसे घुमाने भी ले जाते हैं, जिससे वह खुश रहता है और मां की कमी कम महसूस करता है। अंतिमा बताती हैं कि जब वह काम पर होती हैं, तो बार-बार अपने बच्चे का चेहरा उनकी आंखों में घूमता रहता है। आठ घंटे की ड्यूटी के बाद जब वह थकी-हारी घर लौटती हैं और अपने बच्चे की प्यारी सी मुस्कान देखती हैं, तो उनकी सारी थकान पल भर में गायब हो जाती है।

बच्चों की मुस्कान से भूल जाती हूं थकान:

केंद्रीय विहार सोसाइटी की निवासी जागृति दो बेटों की सिंगल पैरेंट हैं। वह बताती हैं कि अकेले दो बच्चों को संभालना आसान नहीं है। पहले वह नौकरी करती थीं, लेकिन इस साल जनवरी में उनकी नौकरी चली गई। ऐसे में अपने बच्चों की अच्छी परवरिश, उनकी पढ़ाई और घर की सभी जिम्मेदारियों का बोझ उनके कंधों पर आ गया। उन्होंने क्लाउड किचन और होम ब्यूटी पार्लर का काम शुरू किया। सब कुछ एक साथ लेकर चलना बहुत कठिन है, लेकिन जब वह अपने बच्चों को पढ़ते, खेलते और मुस्कुराते हुए देखती हैं, तो उन्हें सब कुछ आसान लगने लगता है। वह कहती हैं कि अगर अपने काम और बच्चों से सच्चा प्यार हो, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है।

हर वर्किंग वुमन एक फाइटर है:

सॉफ्टवेयर इंजीनियर शरण्या पांडेय एक तीन साल की बेटी की मां हैं। वह कहती हैं कि मां बनना एक खूबसूरत एहसास और अनुभव है, लेकिन जब आप एक वर्किंग वुमन होती हैं, तो यह सफर आसान नहीं होता। उनकी जिंदगी उस दिन से पूरी तरह बदल गई, जब उनकी बेटी ने जन्म लिया। मीटिंग के बीच बच्ची के रोने की आवाज, नींद की कमी और हर वक्त बना रहने वाला तनाव - यह सब बहुत चुनौतीपूर्ण था। धीरे-धीरे उन्होंने खुद को संभालना सीखा, अपने जीवन में एक संतुलन बनाया, काम को बांटा और छोटी-छोटी खुशियों को सेलिब्रेट करना शुरू किया। शरण्या का मानना है कि हर कामकाजी महिला वास्तव में एक योद्धा होती है।

ग्रेटर नोएडा सेक्टर पी-3 में रहने वाली पायल गुप्ता अमेरिका की एक कंपनी में फाइनेंस डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं और साथ ही एक बेटे की सिंगल पैरेंट भी हैं। वह बताती हैं कि घर-परिवार और नौकरी के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं होता। वह सुबह 4 बजे उठती हैं, खाना बनाने के साथ-साथ घर के सारे काम करती हैं। फिर अपने बेटे को स्कूल भेजकर खुद ऑफिस जाती हैं। लंच ब्रेक में वह अपने बेटे के लिए प्रश्न पत्र बनाती हैं और शाम को घर लौटकर सारा काम निपटाने के बाद उसके चैप्टर्स की रिकॉर्डिंग करती हैं, ताकि वह रिवीजन कर सके। फिर रात को उसके साथ बैठकर पढ़ाई करवाती हैं। पायल की दिनचर्या हर उस कामकाजी मां की कहानी कहती है जो अपने बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए हर मुश्किल का सामना करती है।

यह कहानियां उन अनगिनत कामकाजी माताओं की हैं जो हर दिन अपने बच्चों के लिए अथक प्रयास करती हैं। उनकी नींद, भूख और आराम सब कुछ उनके बच्चों की खुशी पर कुर्बान है। मातृ दिवस पर, आइए हम इन योद्धा माताओं के जज्बे को सलाम करें और उनके असीम प्यार और बलिदान को याद रखें।