सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: हाईकोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर सजा नहीं बढ़ा सकते, न ही अन्य आरोप में दोषी ठहरा सकते
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि हाईकोर्ट, पीड़ित या सरकार द्वारा अपील न होने पर, स्वतः संज्ञान से सजा नहीं बढ़ा सकते या अभियुक्त को अन्य आरोप में दोषी नहीं ठहरा सकते। यह फैसला नागराजन मामले में आया, जहां हाईकोर्ट ने आत्महत्या के उकसावे के आरोप में स्वतः संज्ञान से सजा बढ़ाई थी।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (4 जून, 2025) को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि हाईकोर्ट अपनी पुनरीक्षण शक्तियों (revisional powers) का प्रयोग स्वयं से (suo motu) तब तक नहीं कर सकते जब तक कि पीड़ित, शिकायतकर्ता या सरकार द्वारा अपील दायर न की गई हो. इसका अर्थ है कि हाईकोर्ट, अपील के अभाव में, किसी अभियुक्त की सजा नहीं बढ़ा सकते या उसे किसी अन्य आरोप में दोषी नहीं ठहरा सकते.
नागराजन मामले पर आया फैसला
जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने नागराजन नामक व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर यह फैसला सुनाया. नागराजन ने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे एक महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने (IPC की धारा 306) का दोषी ठहराया गया था और पांच वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी.
निचली अदालत ने नागराजन को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपों से बरी कर दिया था और उसे केवल महिला की शील भंग करने (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना) और घर में जबरन घुसने के मामले में दोषी ठहराया था. नागराजन ने हाईकोर्ट में अपील की, जिसने निचली अदालत के दोषसिद्धि के आदेश को तो बरकरार रखा, लेकिन स्वतः संज्ञान लेते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत उसकी दोषसिद्धि के लिए कार्यवाही शुरू की और उसे दोषी करार दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने यह बात रिकॉर्ड में ली कि सरकार, पीड़ित या शिकायतकर्ता द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत सजा बढ़ाने या बरी करने के लिए कोई अपील दायर नहीं की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्टीकरण
पीठ ने अपने फैसले में कहा, "आरोपी/दोषी द्वारा दायर अपील और पीड़ित, शिकायतकर्ता या सरकार द्वारा दायर किसी अपील के अभाव में, उच्च न्यायालय सजा बढ़ाने या अपीलकर्ता को किसी अन्य आरोप में दोषी ठहराने के लिए स्वत: संज्ञान लेकर पुनरीक्षण नहीं कर सकता है."
न्यायालय ने आईपीसी की धारा 306 के तहत नागराजन की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया. हालांकि, महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने और घर में जबरन घुसने के लिए उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया. न्यायालय ने निर्देश दिया कि अपीलकर्ता को सत्र न्यायालय द्वारा दी गई मूल सजा भुगतने और जुर्माना अदा करने का निर्देश दिया जाता है. हाईकोर्ट ने पहले सजाएं एक साथ चलाने का आदेश दिया था.
जस्टिस नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि सरकार या शिकायतकर्ता या पीड़ित द्वारा दायर अपील में सजा बढ़ाने के लिए अपीलीय अदालत की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए, सीआरपीसी में प्रावधान है कि अपीलीय अदालत निष्कर्ष और सजा को उलट सकती है और आरोपी को बरी कर सकती है, या अपराध की सुनवाई करने के लिए सक्षम अदालत द्वारा उस पर फिर से मुकदमा चलाने का आदेश दे सकती है, या सजा को बरकरार रखते हुए निष्कर्ष को बदल सकती है.
नागराजन ने हाईकोर्ट के 29 नवंबर, 2021 के आदेश को चुनौती दी थी. नागराजन पर 11 जुलाई, 2003 को अपनी पड़ोसी के घर में जबरन घुसकर उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया था. अगले ही दिन महिला ने अपने शिशु के साथ आत्महत्या कर ली थी.