दुल्हन भागी, दूल्हा पक्ष फंसा! 8 दिन की शादी टूटी, समाज ने लगाया 50 हजार का जुर्माना और कर दिया बहिष्कार

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में शादी के 8 दिन बाद दुल्हन के भागने पर दूल्हे के परिवार को सामाजिक बहिष्कार और 50 हजार रुपये का जुर्माना झेलना पड़ा। जानिए इस हैरान करने वाले मामले की पूरी कहानी।

दुल्हन भागी, दूल्हा पक्ष फंसा! 8 दिन की शादी टूटी, समाज ने लगाया 50 हजार का जुर्माना और कर दिया बहिष्कार

बिलासपुर (छत्तीसगढ़): छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के एक गांव में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। यहां एक नई नवेली दुल्हन शादी के महज आठ दिन बाद ही अपने प्रेमी के साथ फरार हो गई। लेकिन इस घटना का खामियाजा दुल्हन के परिवार को नहीं, बल्कि दूल्हे के परिवार को भुगतना पड़ रहा है। दूल्हे के परिवार को न केवल सामाजिक बहिष्कार का दंश झेलना पड़ रहा है, बल्कि समाज के ठेकेदारों ने उन पर 50 हजार रुपये का भारी जुर्माना भी लगा दिया है। जब परिवार जुर्माना भरने में असमर्थता जताई, तो उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया गया।

यह हैरान करने वाला मामला सीपत थाना क्षेत्र के टेकर गांव का है। यहां रहने वाले देवी प्रसाद धीवर ने साल 2024 में अपने बेटे की शादी सीपत क्षेत्र के ही ग्राम पोड़ी की एक युवती के साथ सामाजिक रीति-रिवाज से करवाई थी। सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन शादी के आठ दिन बाद ही दुल्हन अपने मायके के एक युवक के साथ अचानक चली गई।

दुल्हन के भागने की खबर सुनकर देवी प्रसाद और उनके परिवार को गहरा सदमा लगा। उन्होंने तुरंत इसकी सूचना दुल्हन के मायके वालों को दी। इसके बाद दोनों परिवारों के बीच एक सामाजिक बैठक हुई। इस बैठक में यह फैसला लिया गया कि लड़की पक्ष के लोग शादी में लड़के पक्ष को दिए गए सामान को वापस लौटा देंगे। आपसी सहमति से यह मामला शांत हो गया, और दूल्हे के परिवार ने भी इसे अपनी किस्मत मानकर स्वीकार कर लिया।

लेकिन कहानी में मोड़ तब आया जब इस समझौते की जानकारी गांव के समाज के पदाधिकारियों को हुई। समाज के अध्यक्ष राजेंद्र धीवर, सचिव पवन धीवर और कोषाध्यक्ष सतीश धीकर सहित अन्य पदाधिकारियों ने देवी प्रसाद पर आरोप लगाया कि उन्होंने बिना उन्हें बताए लड़की पक्ष के साथ बैठक कर समझौता कर लिया, जो कि सामाजिक नियमों का उल्लंघन है। इस 'गुनाह' के लिए देवी प्रसाद पर 50 हजार रुपये का भारी जुर्माना लगाया गया। इतना ही नहीं, जब देवी प्रसाद ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई, तो समाज के पदाधिकारियों ने उन्हें और उनके पूरे परिवार को समाज से बहिष्कृत करने का फरमान सुना दिया।

बहिष्कार का दर्द यहीं नहीं थमा। हद तो तब हो गई जब 19 जुलाई 2024 को देवी प्रसाद के भाई का निधन हो गया। इस दुख की घड़ी में भी समाज के पदाधिकारियों ने क्रूरता दिखाई। उन्होंने फरमान जारी किया कि कोई भी रिश्तेदार देवी प्रसाद के भाई की अंत्येष्टि में शामिल नहीं होगा। यहां तक कि यह भी आदेश दिया गया कि यदि कोई इस फरमान का उल्लंघन करते हुए अंतिम संस्कार में शामिल होता है, तो उसे एक लाख रुपये का जुर्माना देना होगा। इस सामाजिक बहिष्कार और भारी आर्थिक दंड के डर से देवी प्रसाद के करीबी रिश्तेदार भी अपने दुख को दबाकर अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके।

पीड़ित देवी प्रसाद और उनका परिवार पिछले एक साल से इस अमानवीय सामाजिक बहिष्कार की पीड़ा झेल रहा है। समाज के पदाधिकारियों के डर से उनके अपने रिश्तेदार भी उनसे किनारा कर चुके हैं, उनके घर आना-जाना बंद कर दिया है। इस असहनीय पीड़ा से तंग आकर आखिरकार देवी प्रसाद ने इस पूरे मामले की शिकायत स्थानीय कलेक्टर से की है। उन्होंने न्याय की गुहार लगाई है और उन दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है, जिन्होंने सामाजिक नियमों की आड़ में उनके परिवार को इतना दुख और अपमान पहुंचाया है। यह घटना छत्तीसगढ़ के ग्रामीण समाज में आज भी व्याप्त अंधविश्वास और कठोर सामाजिक नियमों की एक कड़वी सच्चाई को उजागर करती है।