Indo-Pak Tension: 'सैनिकों का गांव' ढिकौली, हर तीसरे घर से फौजी, बॉर्डर पर तैनात हैं हजार से ज्यादा युवा
भारत-पाक तनाव के बीच बागपत का 'सैनिकों का गांव' ढिकौली चर्चा में। हर तीसरे घर से फौजी, बॉर्डर पर तैनात हैं हजार से ज्यादा युवा। जानें इस देशभक्ति के गांव की कहानी।

प्रकाश वाल्मिकी, रामवीर सिंह, इंद्रपाल ढाका सेवानिवृत सैनिक
बागपत: बागपत जिले का एक जाट बाहुल्य गांव देशभक्ति की एक अनूठी मिसाल पेश करता है। 'सैनिकों का गांव' के नाम से मशहूर ढिकौली में हर तीसरे घर से एक सदस्य भारतीय सेना या अर्धसैनिक बलों में अपनी सेवाएं दे रहा है। वर्तमान में भी, भारत-पाक सीमा पर सबसे ज्यादा सैनिक इसी गांव के हैं। इस गांव के युवा मेजर से लेकर ब्रिगेडियर जैसे उच्च पदों पर तैनात होकर देश की रक्षा में जुटे हैं। शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसका कोई सदस्य देश सेवा में समर्पित न हो।
ढिकौली के स्व. कैप्टन राज सिंह
बागपत से चमरावल मार्ग पर 14 किलोमीटर की दूरी पर 'सैनिकों का गांव ढिकौली' लिखा हुआ एक बोर्ड आपका स्वागत करेगा। यह बोर्ड यूं ही नहीं लगाया गया है। लगभग बीस हजार की आबादी वाले इस जाट बाहुल्य गांव के करीब एक हजार युवा आज भी सेना और अर्धसैनिक बलों में रहकर देश की सुरक्षा का जिम्मा संभाले हुए हैं। वर्तमान भारत-पाक तनाव के बीच भी सीमा पर इस गांव के सबसे ज्यादा सैनिक तैनात हैं, जो मेजर, कर्नल, लेफ्टिनेंट और ब्रिगेडियर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
फौजियों का गांव
ढिकौली के युवाओं के दिलों में देश की सुरक्षा और सेवा का जज्बा बचपन से ही कूट-कूट कर भरा होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि गांव के अधिकांश परिवारों से कोई न कोई सदस्य सेना में रहकर देश की सीमाओं की रक्षा कर रहा है। अपने बड़ों को देश सेवा करते देख, गांव के बच्चों में भी सेना में जाने की प्रबल इच्छा पैदा होती है।
फौजियों का गांव
यह सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है और समय के साथ यह जज्बा और मजबूत होता गया है। इस समय बॉर्डर पर तैनात सैनिकों के परिजन गर्व से कहते हैं कि उनके बेटे देश में कायराना हरकत करने वाले आतंकियों को उनके घर में घुसकर मारने का दम रखते हैं। वे आश्वस्त हैं कि उनके बेटे देश की सीमा पर चट्टान की तरह डटे रहेंगे और दुश्मन को हर नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब देंगे।
फौजियों का गांव
अहम पदों पर रहकर देश सेवा कर रहे ढिकौली के वीर:
ढिकौली गांव के कई सपूत भारतीय सेना में उच्च पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जिनमें कमांडर सुनील ढाका, कर्नल अनिल ढाका, कर्नल पुष्पेंद्र ढाका, कर्नल अजित सिंह, कर्नल अमित ढाका, मेजर कुलदीप, मेजर बॉबी ढाका, सूबेदार अनिल ढाका और लेफ्टिनेंट महिपाल ढाका प्रमुख हैं।
फौजियों का गांव
देश के लिए जंग लड़ते हुए दी शहादत:
ढिकौली की धरती ने देश के लिए अपने वीर सपूतों को कुर्बान भी किया है। हवलदार हरपाल ढाका और सौराज सिंह ढाका 1965 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे। धर्मपाल सिंह ने 1984 में अमृतसर में देश की सुरक्षा के लिए लड़ते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। वहीं, सुरेंद्र ढाका 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हुए, जिन्होंने देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी।
हर जंग में शामिल रहा ढिकौली:
मेजर जनरल सुरेंद्र सिंह ढाका ने 1965, 1971 और 1999 के भारत-पाक युद्धों में सक्रिय भूमिका निभाई थी। बिग्रेडियर रणबीर सिंह ने 1965 और 1971 के युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया। बिग्रेडियर महेंद्र सिंह ने भी 1965 और 1971 के युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे किए थे। कर्नल बलवान सिंह ढाका, कर्नल सतेंद्र ढाका, कर्नल ओमबीर ढाका और कर्नल बलजोर ढाका ने भी 1965 और 1971 के युद्धों में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इसके अलावा, कैप्टन महाराज सिंह ढाका और कैप्टन राजसिंह ढाका ने 1965, 1971 और 1999 के युद्धों में देश के लिए लड़ाई लड़ी थी। कैप्टन राजसिंह तो 1965 के युद्ध में मृत समझकर मोर्चरी तक भेज दिए गए थे, लेकिन दो दिन बाद उन्हें होश आ गया था। सूबेदार मेजर बलजोर ढाका और मेजर यशपाल सिंह ने 1962, 1965 और 1971 के युद्धों में अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया था।
पाकिस्तान की छावनी से उठा लाए थे संदूक:
ढिकौली के स्वर्गीय कैप्टन राज सिंह ने 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में अद्भुत पराक्रम दिखाया था। उनके बेटे ओमबीर ढाका बताते हैं कि 1971 के युद्ध में भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई थी, जिसमें उनके पिता कैप्टन राज सिंह भी शामिल थे। जीत की निशानी के तौर पर उनके पिता लाहौर छावनी में पाकिस्तानी फौज की बैरक से उनका एक संदूक उठाकर लाए थे, जो आज भी उनके घर पर रखा हुआ है।
सेवानिवृत्त सैनिक प्रकाश वाल्मिकी कहते हैं, "मैं वर्ष 1965 में सेना में भर्ती होते ही पाकिस्तान के साथ हुई जंग में चला गया था। मैंने 1971 की जंग भी लड़ी। दोनों बार पाकिस्तान को घर में घुसकर मारा था। इसके बाद भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अब हमारे गांव के बेटे भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं।"
ग्रामीण रामबीर सिंह बताते हैं, "हमारे गांव के युवाओं में सेना में भर्ती होकर देश की सुरक्षा व सेवा करने का जज्बा बहुत अधिक है। अधिकतर युवा सेना में भर्ती की तैयारी करते हैं। माता-पिता का भी यही सपना है कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर सेना में भर्ती होकर अपने देश की रक्षा करें।"
एक अन्य सेवानिवृत्त सैनिक इंद्रपाल ढाका गर्व से कहते हैं, "मैंने वर्ष 1965 और 1971 की जंग लड़ी थी। तब भी हमारे गांव के काफी सैनिक बॉर्डर पर थे और हम सभी ने दुश्मनों को ढेर कर दिया था। हमारा एक-एक सैनिक कई पर भारी पड़ा था। अब हमारे बेटे भी देश की सुरक्षा में लगे हैं और वे दुश्मन को उनकी नापाक हरकतों का करारा जवाब देते रहेंगे।"
ढिकौली गांव सही मायने में देशभक्ति और देश सेवा का एक जीवंत उदाहरण है, जहां पीढ़ी दर पीढ़ी देश की रक्षा का संकल्प लिया जाता है।