गोरखपुर त्रासदी: एक मोबाइल की कीमत तीन ज़िंदगियाँ — परिवारिक तनाव बना मौत की वजह

गोरखपुर के कूचडेहरि गांव में एक मामूली घरेलू विवाद ने भयंकर पारिवारिक त्रासदी का रूप ले लिया। 18 वर्षीय युवक की आत्महत्या के बाद मां और बहन ने भी सल्फास खाकर जान देने की कोशिश की। भाई-बहन की मौत हो गई, मां की हालत गंभीर है।

गोरखपुर त्रासदी: एक मोबाइल की कीमत तीन ज़िंदगियाँ — परिवारिक तनाव बना मौत की वजह

गोरखपुर के हरपुर-बुदहट थाना क्षेत्र के कूचडेहरि गांव में जो घटना हुई, उसने पूरे क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया। एक 18 वर्षीय युवक मोहित कन्नौजिया ने महज़ 1500 रुपये न मिलने पर आत्महत्या कर ली। लेकिन यह केवल एक आत्महत्या नहीं थी — यह एक परिवार के पूरे ताने-बाने को तोड़ देने वाली त्रासदी थी। बेटे की मौत से दुखी मां कौशिल्या और 14 वर्षीय बहन सुप्रिया ने सल्फास खाकर अपनी जान लेने की कोशिश की। भाई-बहन की मौत हो गई और मां की हालत गंभीर है।


घटना का विवरण: मौत की शुरुआत एक झगड़े से

मोहित, जो अहमदाबाद में कपड़े प्रेस करने का काम करता था, हाल ही में छुट्टियों में अपने गांव आया था। वह परिवार की आर्थिक रीढ़ था और 10 साल पहले अपने पिता की मौत के बाद से ही जिम्मेदारियों का बोझ उठा रहा था। बुधवार की सुबह एक मामूली घरेलू झगड़ा हुआ — उसने अपना मोबाइल फेंककर तोड़ दिया और उसकी मरम्मत के लिए मां से 1500 रुपये मांगे। पैसे न मिलने और मां की डांट से आहत होकर मोहित ने दोपहर में अपने कमरे में फांसी लगा ली।

जब उसकी मां और बहन बाजार से लौटीं और दरवाजा तोड़ा, तो उन्होंने मोहित को फंदे से लटका देखा। यह दृश्य इतना पीड़ादायक था कि मां कौशिल्या ने मौके पर ही सल्फास खा लिया। बेटी सुप्रिया ने भी मां की देखादेखी वही कदम उठाया।


गांव में पसरा मातम, पुलिस की जांच जारी

घटना की जानकारी मिलते ही गांव में कोहराम मच गया। ग्राम प्रधान ने पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने मां-बेटी को तत्काल मेडिकल कॉलेज भिजवाया, लेकिन सुप्रिया को नहीं बचाया जा सका। मोहित और सुप्रिया दोनों की मौत से परिवार पूरी तरह टूट चुका है। पुलिस ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है और मामले की जांच कर रही है।

एसपी उत्तरी जितेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया मामला पारिवारिक तनाव का है। पुलिस सभी पहलुओं की जांच कर रही है।


दादी-दादा का दुख: दो पीढ़ियां एक ही दिन में उजड़ गईं

मोहित के दादा हरिलाल (72) पशु चराने गए थे और जब लौटे तो दरवाजे पर भीड़ देखकर घबरा गए। जब उन्हें पूरे घटनाक्रम की जानकारी मिली तो वे जमीन पर बैठ गए और फूट-फूट कर रोने लगे। उनका कहना था कि यदि जरा भी आभास होता, तो वे घर से बाहर ही न निकलते। 10 साल पहले बेटे की चिता को आग दी थी, अब पोते-पोती की लाशें देखनी पड़ रही हैं।


समाज के लिए चेतावनी: मानसिक स्वास्थ्य और संवाद की कमी

यह घटना सिर्फ एक परिवार की व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि हमारे समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है। बच्चों पर अत्यधिक जिम्मेदारी का बोझ डालना, भावनात्मक संवाद की कमी और आर्थिक असमर्थता — ये सभी कारण धीरे-धीरे उन्हें मानसिक रूप से तोड़ देते हैं।

मोहित एक मेहनती युवा था जो अपने परिवार के लिए काम करता था, लेकिन शायद उसके भीतर के तनाव और भावनाओं को किसी ने नहीं समझा। 1500 रुपये की एक छोटी सी आवश्यकता ने उसे इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। और यह भी उतना ही दुखद है कि उसके बाद मां और बहन ने भी जीवन से हार मान ली।


आगे क्या? समाज और सरकार की भूमिका

सरकार द्वारा चलाई जा रही मानसिक स्वास्थ्य योजनाएं और हेल्पलाइन नंबरों की आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में और ज्यादा जोर देने की है। इसके साथ ही, समाज को भी जागरूक किया जाना चाहिए कि किसी के साथ बातचीत करना, उसकी बात सुनना और समझना कितना जरूरी है।


निष्कर्ष: एक दुखद सीख

गोरखपुर की यह त्रासदी हमें सिखाती है कि भावनाओं को हल्के में नहीं लेना चाहिए। संवाद, सहानुभूति और मानसिक स्वास्थ्य की समझ हर घर में होनी चाहिए। अगर समय रहते कोई मोहित की तकलीफ को समझ पाता, तो शायद तीन जिंदगियां आज जिंदा होतीं।