भारत का 'ब्रह्मास्त्र': त्रिपुरा में कैलाशहर एयरबेस होगा फिर से सक्रिय, चीन-बांग्लादेश की बढ़ी चिंता
भारत, पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में स्थित ऐतिहासिक कैलाशहर एयरबेस को फिर से सक्रिय करने की तैयारी में है। यह कदम बांग्लादेश के लालमोनिरहाट एयरबेस को चीन द्वारा आधुनिक सैन्य ठिकाने में बदलने की खबरों के बीच उठाया जा रहा है, जो भारत के रणनीतिक सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब स्थित है।

भारत सरकार पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में स्थित ऐतिहासिक कैलाशहर एयरबेस को एक बार फिर से सक्रिय करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है। यह सामरिक रूप से महत्वपूर्ण निर्णय ऐसे समय पर लिया गया है, जब खुफिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि चीन, बांग्लादेश के लालमोनिरहाट एयरबेस को एक आधुनिक सैन्य ठिकाने के रूप में विकसित करने में मदद कर रहा है। यह घटनाक्रम नई दिल्ली के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि लालमोनिरहाट एयरबेस भारत के लिए अत्यंत संवेदनशील 'सिलीगुड़ी कॉरिडोर' से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
चीन-बांग्लादेश की गतिविधियों पर भारत की पैनी नजर:
भारतीय रणनीतिकारों के बीच चीन और बांग्लादेश के बढ़ते सैन्य सहयोग को लेकर गहरी चिंता व्याप्त है। विशेष रूप से, लालमोनिरहाट एयरबेस में चीनी हस्तक्षेप को दक्षिण एशिया में बीजिंग के बढ़ते प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे 'चिकन नेक' के नाम से भी जाना जाता है, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ने वाला एक संकरा भू-भाग है, जो रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में किसी भी विदेशी सैन्य गतिविधि को भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा मानता है।
कैलाशहर एयरबेस: 1971 के युद्ध का साइलेंट हीरो:
ऐतिहासिक कैलाशहर एयरबेस ने 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के लिए एक महत्वपूर्ण लॉजिस्टिक और ऑपरेशनल बेस के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं। अब इस निष्क्रिय पड़े एयरबेस को फिर से सक्रिय करने का निर्णय न केवल इसकी ऐतिहासिक विरासत को पुनर्जीवित करेगा, बल्कि इस संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्र में भारत को एक मजबूत सैन्य उपस्थिति भी प्रदान करेगा।
भारत के लिए इस कदम के संभावित फायदे:
- सैन्य तैनाती और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता: कैलाशहर एयरबेस के सक्रिय होने से भारत को बांग्लादेश सीमा और सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास त्वरित सैन्य कार्रवाई करने, प्रभावी निगरानी रखने और आवश्यक लॉजिस्टिक सहायता पहुंचाने में महत्वपूर्ण सुविधा मिलेगी।
- चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना: यह कदम चीन को एक स्पष्ट और कड़ा संदेश देगा कि भारत अपने रणनीतिक हितों और क्षेत्रीय प्रभुत्व को कमजोर नहीं होने देगा।
- पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा सुदृढ़ करना: यह एयरबेस पूर्वोत्तर भारत में भारत की समग्र रक्षा क्षमताओं को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाएगा और क्षेत्र के सात बहनों कहे जाने वाले राज्यों की सुरक्षा में एक अहम भूमिका निभाएगा।
- स्थानीय विकास और रोजगार सृजन: इस महत्वाकांक्षी परियोजना के परिणामस्वरूप त्रिपुरा राज्य में आधारभूत संरचना का विकास होगा, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलेगा।
चीन की रणनीति: 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' का विस्तार?
विश्लेषकों का मानना है कि बांग्लादेश में लालमोनिरहाट एयरबेस को उन्नत बनाने में चीन की मदद उसकी विवादास्पद 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' रणनीति का हिस्सा है। इस रणनीति के तहत चीन, भारत के चारों ओर सैन्य और आर्थिक प्रभाव के एक नेटवर्क का निर्माण कर रहा है। इसके अतिरिक्त, चीन द्वारा बांग्लादेश को आधुनिक हथियार, मिसाइल प्रणालियां और नौसैनिक उपकरण प्रदान करना भारत की सुरक्षा चिंताओं को और बढ़ा रहा है।
भारत का कैलाशहर एयरबेस को पुनः सक्रिय करने का निर्णय और चीन का बांग्लादेश में सैन्य उपस्थिति मजबूत करने का प्रयास, दोनों ही सिलीगुड़ी कॉरिडोर के आसपास बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के स्पष्ट संकेत हैं। आने वाले समय में यह सीमावर्ती क्षेत्र भारत-चीन और भारत-बांग्लादेश के जटिल संबंधों के संदर्भ में और भी अधिक संवेदनशील हो सकता है।