Pegasus Spyware Row: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी- अगर देश आतंकियों की जासूसी करे तो गलत क्या है?
पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी—आतंकियों पर नजर रखना गलत नहीं। तकनीकी समिति की रिपोर्ट गोपनीय रखी जाएगी, अगली सुनवाई 30 जुलाई को।

नई दिल्ली | ब्यूरो रिपोर्ट:
पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि यदि सरकार देश की सुरक्षा के लिए आतंकियों की निगरानी कर रही है, तो उसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि स्पाइवेयर रखना या इस्तेमाल करना अवैध नहीं है, बल्कि यह जरूरी है कि इसका दुरुपयोग न हो।
"देश की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता" – सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने टिप्पणी की कि “अगर देश आतंकियों के खिलाफ स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर रहा है, तो इसमें गलत क्या है? असल सवाल यह है कि यह तकनीक किसके खिलाफ और किस उद्देश्य से प्रयोग हो रही है।” अदालत ने जोर देते हुए कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
तकनीकी समिति की रिपोर्ट की गोपनीयता बनी रहेगी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तकनीकी समिति की रिपोर्ट पर सार्वजनिक बहस नहीं होनी चाहिए। अदालत अब यह मूल्यांकन करेगी कि रिपोर्ट की कौन-सी जानकारी संबंधित व्यक्ति के साथ साझा की जा सकती है, विशेषकर अगर कोई याचिकाकर्ता यह जानना चाहता है कि उसका नाम सूची में है या नहीं। मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई 2025 को होगी।
क्या है पेगासस मामला?
पेगासस एक इजरायली सॉफ्टवेयर है, जिसे मोबाइल फोन की निगरानी और जासूसी के लिए विकसित किया गया है। साल 2021 में मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया था कि भारत में पत्रकारों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के फोन को निगरानी के लिए टारगेट किया गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक स्वतंत्र जांच समिति गठित की थी।
जांच समिति की संरचना:
तकनीकी समिति में शामिल हैं – नवीन कुमार चौधरी, प्रभाहरण पी, और अश्विन अनिल गुमास्ते। इसकी निगरानी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आर. वी. रवींद्रन कर रहे हैं, जिन्हें पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ संदीप ओबेरॉय का सहयोग प्राप्त है।
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