राकेश टिकैत के साथ हुई धक्का-मुक्की पर सिसौली में भाकियू की महापंचायत, बोले वक्ता- अगर सब आमंत्रित थे तो विरोध क्यों?
मुजफ्फरनगर जन आक्रोश रैली में राकेश टिकैत के साथ हुई धक्का-मुक्की के विरोध में सिसौली में भाकियू ने महापंचायत बुलाई। वक्ताओं ने पूछा—सब बुलाए गए थे, तो विरोध सिर्फ टिकैत का क्यों?

मुजफ्फरनगर की जन आक्रोश रैली में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत के साथ हुई धक्का-मुक्की की घटना ने एक बार फिर किसान राजनीति को गरमा दिया है। इस घटना के विरोध में सिसौली गांव में आयोजित भाकियू की महापंचायत में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों से किसान जुटे और गुस्सा जाहिर किया।
घटना की पृष्ठभूमि
जन आक्रोश रैली एक सामूहिक आयोजन थी जिसमें देश और प्रदेश के विभिन्न संगठनों को आमंत्रित किया गया था। रैली का उद्देश्य था—कश्मीर के पहलगाम में मारे गए पर्यटकों के विरोध में एकजुटता प्रदर्शित करना। इसी मंच पर राकेश टिकैत के साथ मंच पर धक्का-मुक्की हुई, जिसने पूरे किसान आंदोलन को नई दिशा दे दी।
सिसौली से उठा किसानों का हुंकार
भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत स्वयं सिसौली से किसानों के काफिले के साथ किसान मजदूर पंचायत के लिए निकले। इससे पहले उन्होंने महेंद्र सिंह टिकैत की समाधि पर पुष्प अर्पित किए और फिर किसानों के जत्थे के साथ जीआईसी मैदान, मुजफ्फरनगर की ओर रवाना हुए।
पंचायत में उठे तीखे सवाल
पंचायत में एक के बाद एक वक्ताओं ने मंच संभाला और सवाल दागे:
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प्रमोद कुमार, ईंट निर्माता कल्याण समिति के अध्यक्ष ने कहा,
“जब सभी संगठनों को रैली में बुलाया गया था, तो केवल राकेश टिकैत का विरोध क्यों हुआ?”
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उन्होंने सवाल उठाया कि देशभक्ति अब एक राजनीतिक सर्टिफिकेट क्यों बन गई है? क्या हर किसी को अपनी राष्ट्रभक्ति साबित करनी होगी?
इस बयान ने माहौल को गंभीर बना दिया और किसानों की नाराज़गी खुलकर सामने आई।
सहारनपुर, बागपत, शामली से आया समर्थन
इस पंचायत में सिर्फ मुजफ्फरनगर ही नहीं, बल्कि पश्चिमी यूपी के कई जिलों से भाकियू कार्यकर्ता पहुंचे:
सहारनपुर:
जिलाध्यक्ष नरेश स्वामी के नेतृत्व में कार्यकर्ता सुबह-सुबह सैयद माजरा टोल प्लाजा पर इकट्ठा हुए और जत्थे के रूप में मुजफ्फरनगर पहुंचे।
बागपत:
भाकियू जिलाध्यक्ष प्रताप सिंह गुर्जर ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा,
“हम नकली संगठनों को चुन-चुनकर जवाब देंगे।”
उन्होंने आरोप लगाया कि टिकैत के पहलगाम मामले पर दिए गए बयान को जानबूझकर तोड़ा-मरोड़ा गया।
शामली:
यहां कार्यकर्ता कलक्ट्रेट के सामने इकट्ठा हुए और जमकर नारेबाजी की। उनका कहना था कि,
“किसान नेता के साथ अभद्रता बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
रैली का उद्देश्य बनाम असल मुद्दा
जन आक्रोश रैली का उद्देश्य एक राष्ट्रीय मुद्दे पर जनभावना प्रकट करना था, लेकिन इसमें किसान नेता के साथ दुर्व्यवहार ने पूरे आयोजन पर सवाल खड़े कर दिए:
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क्या यह राजनीतिक पूर्वाग्रह था?
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क्या किसान आंदोलन को कमजोर करने की रणनीति है?
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या यह भीतरघात की योजना का हिस्सा?
भाकियू कार्यकर्ताओं के अनुसार, यह सिर्फ एक नेता पर हमला नहीं बल्कि पूरे किसान आंदोलन को दबाने की कोशिश है।
भविष्य की रणनीति क्या?
भाकियू ने संकेत दिए हैं कि यदि जल्द ही इस मामले पर आयोजकों की ओर से माफी और जिम्मेदारी नहीं ली गई, तो:
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पूरे प्रदेश में किसान विरोध प्रदर्शन होंगे,
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अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का घेराव किया जाएगा,
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और आने वाले चुनावों में राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
क्या राकेश टिकैत फिर आंदोलन की अगुवाई करेंगे?
राकेश टिकैत पहले भी कई बार किसान आंदोलनों का चेहरा रहे हैं, और अब यह विवाद उन्हें दोबारा केंद्र में ले आया है।
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कुछ लोग इसे उनकी छवि खराब करने की साजिश मान रहे हैं,
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वहीं अन्य मानते हैं कि यह घटना भाकियू के भीतर आंतरिक विभाजन का संकेत हो सकती है।
निष्कर्ष: ये सिर्फ पंचायत नहीं, चेतावनी थी
सिसौली की यह पंचायत किसान राजनीति के एक नए मोड़ का संकेत देती है। यह सिर्फ विरोध नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक चेतावनी थी कि अगर किसान नेताओं का अपमान किया गया, तो सड़क से संसद तक आंदोलन खड़ा हो सकता है।
राकेश टिकैत का नाम अब सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक प्रतीक बन गया है—किसानों की अस्मिता और अधिकार का। और जब प्रतीक को ठेस लगती है, तो प्रतिक्रिया सिर्फ एक पंचायत नहीं, आगामी आंदोलन की भूमिका होती है।