UP पुलिस में बड़ा फेरबदल: संभल के सीओ अनुज चौधरी का चंदौसी तबादला, विवादित बयान बना वजह

संभल के सीओ अनुज चौधरी का विवादित बयान उन्हें भारी पड़ा। यूपी पुलिस ने उन्हें चंदौसी ट्रांसफर कर दिया है। साथ ही क्लीन चिट भी निरस्त कर दोबारा जांच के आदेश दिए गए हैं।

May 3, 2025 - 13:13
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UP पुलिस में बड़ा फेरबदल: संभल के सीओ अनुज चौधरी का चंदौसी तबादला, विवादित बयान बना वजह

                                                                          संभल में सीओ अनुज चाैधरी

उत्तर प्रदेश के संभल जिले की पुलिस व्यवस्था में शुक्रवार को एक बड़ा प्रशासनिक फेरबदल देखने को मिला। यह बदलाव केवल पदस्थापन तक सीमित नहीं है, बल्कि एक ऐसे अधिकारी के स्थानांतरण से जुड़ा है जो बीते कुछ समय से अपने बेबाक और विवादित बयानों को लेकर लगातार चर्चा में रहे हैं।


क्या हुआ बदलाव?

संभल जिले के सीओ अनुज चौधरी को चंदौसी सर्किल में ट्रांसफर कर दिया गया है। उनकी जगह अब एएसपी आलोक कुमार को संभल सर्किल का प्रभार सौंपा गया है। यह तबादला एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा प्रतीत होता है, लेकिन इसके पीछे छिपी पृष्ठभूमि कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

इस बदलाव के तहत:

  • डॉ. प्रदीप कुमार सिंह को बहजोई सर्किल से हटाकर सीओ ट्रैफिक की जिम्मेदारी दी गई है।

  • अब तक ट्रैफिक सीओ रहे संतोष कुमार सिंह को लाइन हाजिर कर दिया गया है।

  • चंदौसी के सीओ आलोक सिद्धू को अब बहजोई सर्किल का कार्यभार सौंपा गया है।


विवादित बयान और उसकी प्रतिक्रिया

सीओ अनुज चौधरी का तबादला मात्र प्रशासनिक कार्यवाही नहीं बल्कि उनके एक विवादित बयान की प्रतिध्वनि है। उन्होंने होली और जुमा को लेकर कहा था:

“होली साल में एक बार आती है, जुमा 52 बार। अगर किसी को रंग से परहेज है, तो वो घर से बाहर न निकले। ईद की सिवइयां खानी हैं तो होली की गुजिया भी खानी पड़ेगी।”

यह बयान तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और कई वर्गों ने इसे सांप्रदायिक रंग देने वाला करार दिया। बयान के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं, वहीं कुछ लोग उनके समर्थन में भी खड़े हुए।


क्लीनचिट निरस्त, दोबारा जांच शुरू

इस विवाद के बाद अनुज चौधरी के खिलाफ आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने डीजीपी कार्यालय में शिकायत दर्ज करवाई थी। प्रारंभिक जांच में उन्हें क्लीनचिट दे दी गई थी, लेकिन अब वह क्लीनचिट निरस्त कर दी गई है और नवीन जांच के आदेश दिए गए हैं।

नवीन जांच में:

  • एएसपी श्रीश्चंद्र को शिकायतकर्ता से साक्ष्य और बयान प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है।

  • शिकायतकर्ता को तीन दिनों में सभी संबंधित तथ्य और सबूत देने को कहा गया है।

  • यह देखा जाएगा कि क्या बयान पुलिस सेवा नियमावली का उल्लंघन करते हैं या किसी समुदाय के प्रति भेदभाव और असुरक्षा की भावना उत्पन्न करते हैं।

क्या थे आरोप?

अमिताभ ठाकुर द्वारा दिए गए आरोपों में कहा गया था कि:

  • सीओ अनुज चौधरी बिना अधिकार के बयानबाजी करते हैं।

  • अपने बयानों और कार्यशैली से समाज में सांप्रदायिक तनाव पैदा करते हैं।

  • सेवा और वर्दी नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।

  • एक वर्ग विशेष के भीतर असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर रहे हैं।

प्रारंभिक जांच में दो गवाहों के बयान के आधार पर आरोपों को खारिज कर दिया गया था। लेकिन शिकायतकर्ता ने यह आपत्ति जताई कि जांच अधिकारी ने उनका पक्ष सुना ही नहीं। इस आपत्ति को सही मानते हुए डीजीपी कार्यालय ने क्लीनचिट रद्द कर दी।


तबादले का असर और सियासी चर्चा

यह तबादला यूपी की पुलिस व्यवस्था में एक संवेदनशीलता और संतुलन कायम रखने का संकेत है।

  • एक ओर अनुशासन और जिम्मेदारी की बात है,

  • तो दूसरी ओर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्याख्या का मुद्दा भी जुड़ा है।

पुलिस अधिकारियों के बयान और उनकी लोकप्रियता या आलोचना, दोनों ही अब न सिर्फ फील्ड में बल्कि डिजिटल स्पेस में भी असर डालते हैं।


नए सीओ की भूमिका और चुनौतियां

संभल की कमान अब एएसपी आलोक कुमार के हाथों में है। उन्हें:

  • संवेदनशील इलाकों में साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने,

  • पिछले घटनाक्रम की छवि सुधारने,

  • और कानून व्यवस्था को सख्ती से लागू करने जैसी तीनहरी चुनौती का सामना करना होगा।

उनकी नियुक्ति को संतुलित नेतृत्व के रूप में देखा जा रहा है।


निष्कर्ष

सीओ अनुज चौधरी का तबादला और उनके खिलाफ जांच की पुनः शुरुआत यह दर्शाती है कि प्रशासनिक जवाबदेही और लोकतांत्रिक संवेदनशीलता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अब देखना यह है कि क्या वे दोबारा सेवा में वापस उसी भूमिका में लौटते हैं, या यह स्थानांतरण उनके करियर में एक नया मोड़ साबित होगा।

इस घटनाक्रम से पुलिस अधिकारियों को यह स्पष्ट संकेत भी मिला है कि प्रशासनिक पदों पर संयम और विवेकशीलता कितनी ज़रूरी है, खासकर जब विभाजनकारी बयानबाजी तेजी से समाज को प्रभावित कर सकती है।

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