Shimla Sanjauli Masjid: संजौली मस्जिद का अब पूरा ढांचा गिरेगा, कोर्ट ने निचली दो मंजिलों को भी बताया गैरकानूनी
Shimla Sanjauli Masjid ka pura dhancha girane ka aadesh, court ne nichli do manzilon ko bhi illegal bataya. Waqf board karega challenge. Janiye puri khabar.

Himanchal: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के संजौली में स्थित मस्जिद को लेकर एक बड़ा फैसला आया है। नगर निगम आयुक्त कोर्ट ने शनिवार को अपना अंतिम निर्णय सुनाते हुए मस्जिद की निचली दो मंजिलों को भी अवैध घोषित कर दिया है। इसके साथ ही, कोर्ट ने इन मंजिलों को भी गिराने का आदेश जारी कर दिया है। इस नए आदेश के बाद अब पूरी पांच मंजिला संजौली मस्जिद को जमींदोज किया जाएगा।
इससे पहले, इसी मामले में मस्जिद की ऊपरी तीन मंजिलों को गैरकानूनी करार दिया गया था और उन्हें गिराने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। अब निचली दो मंजिलों पर भी गाज गिरी है। हालांकि, मस्जिद का प्रबंधन देखने वाले वक्फ बोर्ड ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का निर्णय लिया है।
कोर्ट में चुनौती देगा वक्फ बोर्ड:
वक्फ बोर्ड का कहना है कि उन्हें जैसे ही फैसले की आधिकारिक कॉपी मिलेगी, वे इसे अपने सीईओ जफर इकबाल के सामने रखेंगे। इसके बाद, इस फैसले को कानूनी रूप से चुनौती दी जाएगी। मस्जिद को वैध साबित करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज पेश करने में नाकाम रहे वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि मस्जिद की निचली दो मंजिलें तो आजादी से भी पहले की बनी हुई हैं और वर्तमान मस्जिद का निर्माण उसी नींव पर किया गया है। लेकिन, कोर्ट ने इस दावे को स्वीकार नहीं किया क्योंकि बोर्ड निचली मंजिलों के निर्माण की अनुमति, नक्शा और जमीन के मालिकाना हक का राजस्व रिकॉर्ड पेश करने में विफल रहा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इन निचली मंजिलों को गिराने के लिए प्रशासन कितना समय देता है।
50 मिनट की बहस के बाद आया फैसला:
शनिवार दोपहर करीब 12 बजे नगर निगम आयुक्त कोर्ट में इस संवेदनशील मामले पर बहस शुरू हुई। आयुक्त ने वक्फ बोर्ड से निचली दो मंजिलों से जुड़े सभी जरूरी राजस्व रिकॉर्ड पेश करने को कहा। इसके साथ ही, उन्होंने मस्जिद का नक्शा और निर्माण की मंजूरी दिखाने का भी निर्देश दिया। इस पर बोर्ड के वकील ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड अभी उपलब्ध नहीं है और वह अपडेट नहीं है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि मौके पर 1947 से पहले की मस्जिद मौजूद थी, जिसकी जगह पर ही वर्तमान मस्जिद का निर्माण किया गया है। इस पर आयुक्त ने सवाल उठाया कि जब 2010 में पुरानी मस्जिद को तोड़ा गया, तो नई मस्जिद बनाने के लिए नगर निगम से अनुमति क्यों नहीं ली गई।
स्थानीय रेजिडेंट सोसाइटी ने भी इस बात पर जोर दिया कि नए निर्माण के लिए नगर निगम से विधिवत मंजूरी लेना अनिवार्य था। उन्होंने बताया कि मस्जिद कमेटी ने नक्शा पास करवाना तो दूर, नगर निगम से टैक्स और कूड़े की एनओसी तक नहीं ली थी। करीब 50 मिनट तक चली तीखी बहस के बाद आयुक्त ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। दोपहर 1:25 बजे जब दोबारा सुनवाई शुरू हुई, तो कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए निचली दो मंजिलों को भी अवैध करार दिया, क्योंकि वक्फ बोर्ड या मस्जिद कमेटी उनके निर्माण से जुड़े कोई भी वैध दस्तावेज पेश नहीं कर पाई थी।
सोसायटी बोली- आखिरकार मिला इंसाफ:
आयुक्त कोर्ट से लेकर प्रदेश हाईकोर्ट तक इस मस्जिद के अवैध निर्माण का मुद्दा उठाने वाली संजौली की रेजीडेंट सोसायटी ने इस फैसले को एक ऐतिहासिक जीत बताया है। सोसायटी के सदस्यों ने कहा कि सरकारी जमीन पर अवैध रूप से बनाई गई इस मस्जिद को हटाने के लिए पूरे शहर में लोगों ने प्रदर्शन किए थे। इस दौरान कई लोगों पर मुकदमे दर्ज हुए और कुछ को तो पुलिस की लाठियां भी खानी पड़ी थीं। लेकिन आज, उन्हें आखिरकार इंसाफ मिल गया है। सोसायटी के अधिवक्ता जगत पाल ने कहा कि वे पहले दिन से ही यह कह रहे थे कि यह मस्जिद गैरकानूनी है, क्योंकि इसका निर्माण सरकारी जमीन पर किया गया है। अब आयुक्त कोर्ट ने भी इसे अवैध माना है और निचली दो मंजिलों को भी गिराना होगा। उन्होंने कहा कि इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि मस्जिद जिस जमीन पर खड़ी है, वह वास्तव में सरकार की है और यह पूरा निर्माण अवैध रूप से किया गया था।
नियमों को ताक पर रखकर हुआ निर्माण:
आयुक्त कोर्ट में सुनवाई मुख्य रूप से मस्जिद के भवन निर्माण की वैधता पर केंद्रित रही। मस्जिद किस जमीन पर बनी है, इस पर अलग-अलग दावे हैं। कोर्ट ने भी स्पष्ट किया कि यह फैसला केवल अवैध निर्माण को लेकर है, न कि जमीन के मालिकाना हक या किसी धार्मिक पहलू को देखकर। वक्फ बोर्ड ने दावा किया था कि यह मस्जिद 1947 से भी पुरानी है और 2010 में पुरानी इमारत की जगह नई इमारत बनाई गई। इस पर कोर्ट ने कहा कि मस्जिद के अस्तित्व पर कोई सवाल नहीं है, लेकिन 2010 में जब पुरानी मस्जिद को तोड़कर नई का निर्माण शुरू किया गया, तो नगर निगम से कोई अनुमति नहीं ली गई थी। अनुमति न लेने के कारण ही नगर निगम ने उसी साल निर्माण कार्य रोकने का नोटिस जारी किया था। इसके बाद भी कई नोटिस भेजे गए, लेकिन निर्माण कार्य जारी रहा। कोर्ट के अनुसार, किसी भी नए निर्माण को शुरू करने से पहले नगर निगम से अनुमति और नक्शा पास कराना अनिवार्य है, जिसका मस्जिद कमेटी ने पालन नहीं किया, और यही कारण है कि इसे अवैध घोषित किया गया है। प्रदेश हाईकोर्ट ने भी इस मामले की सुनवाई 8 मई से पहले करने का आदेश दिया था, जिसके चलते आयुक्त ने शनिवार को अपना अंतिम फैसला सुना दिया।
वक्फ बोर्ड करेगा चुनौती:
वक्फ बोर्ड के संपदा अधिकारी कुतुबदीन मान ने कहा कि वे इस फैसले को सक्षम कोर्ट में चुनौती देंगे। उनका दावा है कि मस्जिद की निचली मंजिलें आजादी से पहले की हैं और राजस्व रिकॉर्ड में 'गैर मुमकिन मस्जिद' के तौर पर दर्ज हैं। हालांकि, रिकॉर्ड अपडेट न होने के कारण वे इसे कोर्ट में पेश नहीं कर सके। उन्होंने बताया कि अगले हफ्ते फैसले की कॉपी मिलने के बाद इसे बोर्ड के सीईओ के सामने रखा जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि ऊपरी मंजिलें अवैध थीं, जिन्हें उन्होंने और मस्जिद कमेटी ने कोर्ट के आदेश पर तोड़ दिया है, लेकिन निचली मंजिल पर आए फैसले को चुनौती दी जाएगी।
इस फैसले के बाद संजौली मस्जिद का भविष्य अनिश्चित है। अब सभी की निगाहें वक्फ बोर्ड की कानूनी चुनौती और प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी हुई हैं।