आतंकियों के गढ़ में तालिबान का शिक्षा 'तमाशा': महिलाओं पर रोक, आतंकियों के समर्थकों को डिग्री

तालिबान अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा पर रोक के बावजूद पाकिस्तान के आतंकी कनेक्शन वाले मदरसे दारुल उलूम हक्कानिया के छात्रों को मास्टर और ग्रेजुएशन की डिग्रियां दे रहा है।

आतंकियों के गढ़ में तालिबान का शिक्षा 'तमाशा': महिलाओं पर रोक, आतंकियों के समर्थकों को डिग्री

एक तरफ अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने महिलाओं की शिक्षा पर क्रूर प्रतिबंध लगा रखा है, वहीं दूसरी ओर इसी सरकार का एक चौंकाने वाला कदम सामने आया है। तालिबान अब पाकिस्तान के विवादित इस्लामी मदरसे दारुल उलूम हक्कानिया से पढ़े हुए छात्रों को औपचारिक स्नातक और मास्टर की डिग्रियां प्रदान कर रहा है। खबरों के अनुसार, बुधवार, गुरुवार और शनिवार को आयोजित होने वाले विशेष कार्यक्रमों में लगभग 200 छात्रों को यह उपाधियां दी जाएंगी।

यह फैसला ऐसे समय में आया है जब अफगानिस्तान में लाखों लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। तालिबान ने 2021 में सत्ता में लौटने के बाद से शिक्षा व्यवस्था में व्यापक बदलाव किए हैं, जिसमें आधुनिक विषयों को हटाना, स्वतंत्र विचारों वाले प्रोफेसरों को बाहर करना और विश्वविद्यालयों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाना शामिल है। अब, धार्मिक शिक्षा को औपचारिक डिग्री में तब्दील किया जा रहा है, जिससे अफगान समाज में गहरा आक्रोश और चिंता है।

दारुल उलूम हक्कानिया, जिसे कभी 'आतंकियों की फैक्ट्री' के रूप में कुख्यात माना जाता था, तालिबान के कई शीर्ष नेताओं का शिक्षा केंद्र रहा है। तालिबान के पूर्व प्रमुख अख्तर मंसूर, हक्कानी नेटवर्क के संस्थापक जलालुद्दीन हक्कानी, वर्तमान आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी और मुख्य न्यायाधीश अब्दुल हकीम हक्कानी जैसेfigures इसी मदरसे के छात्र रहे हैं। काबुल के एक पत्रकार और विश्लेषक मुजीब खलवतगर के अनुसार, यह मदरसा तालिबान की विचारधारा का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है और तालिबान इसे अपनी 'अनौपचारिक यूनिवर्सिटी' मानते हैं।

अफगान जनता इस फैसले को लेकर बेहद नाराज है। उनका कहना है कि देश में योग्य और शिक्षित युवा बेरोजगार घूम रहे हैं, जबकि तालिबान सीमा पार से पढ़कर आए मौलवियों को बढ़ावा दे रहा है। सोशल मीडिया पर लोग अपनी निराशा व्यक्त कर रहे हैं, उनका कहना है कि विश्वविद्यालय अब मदरसे बन चुके हैं और शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है।

तालिबान के उच्च शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी दस्तावेजों के अनुसार, खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के अकोड़ा खट्टक स्थित इस मदरसे से पढ़े 2,231 छात्रों को कुल मिलाकर डिग्रियां दी जाएंगी, जिनमें 951 स्नातक और 1,280 मास्टर डिग्रियां शामिल हैं। यह कदम तालिबान की उस व्यापक नीति का हिस्सा है जिसके तहत वह मदरसों के छात्रों और मौलवियों को औपचारिक शैक्षणिक मान्यता देना चाहता है।

यह विडंबना ही है कि जिस सरकार ने देश की आधी आबादी (महिलाओं) के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद कर दिए हैं, वह दूसरे देश के एक ऐसे मदरसे से पढ़े छात्रों को डिग्रियां बांट रही है, जिसका संबंध आतंकी संगठनों से जगजाहिर है। यह कदम न केवल अफगान शिक्षा प्रणाली को कमजोर करेगा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी तालिबान की छवि को और धूमिल करेगा। अफगानिस्तान के भविष्य के लिए यह एक चिंताजनक संकेत है कि शिक्षा के नाम पर इस तरह का भेदभाव और पक्षपात किया जा रहा है।