News : वाराणसी में स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल 40 लाख की आबादी पर सिर्फ 88 ICU बेड, BHU में भी सीमित सुविधा
जहां स्वास्थ्य सुविधाओं का हब होने का दावा किया जाता है, गंभीर आईसीयू बेड की कमी से जूझ रहा है। 40 लाख की आबादी पर सरकारी अस्पतालों में बीएचयू को छोड़कर आईसीयू बेड न के बराबर हैं, जिससे मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

Varanasi News : वाराणसी, जिसे चिकित्सा सुविधाओं के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में प्रचारित किया जाता है, वास्तविकता में गंभीर रूप से आईसीयू (गहन चिकित्सा इकाई) बेड की कमी से जूझ रहा है। यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब यह ज्ञात होता है कि इस जिले की अनुमानित आबादी लगभग 40 लाख है, लेकिन इन लाखों लोगों के लिए सरकारी अस्पतालों में केवल 88 आईसीयू बेड उपलब्ध हैं। इनमें से भी अधिकांश बेड बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के अस्पतालों में केंद्रित हैं, जबकि अन्य सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में आईसीयू की सुविधा लगभग नगण्य है।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा सरकारी अस्पतालों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के दावों के बावजूद, गंभीर रूप से बीमार मरीजों और उनके परिवारों को आईसीयू बेड की तलाश में दर-दर भटकना पड़ता है। बीएचयू के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (IMS) में 54 बेड और बीएचयू ट्रॉमा सेंटर में 30 बेड ही प्रमुख सरकारी आईसीयू सुविधाएँ हैं। मंडलीय अस्पताल में केवल 4 आईसीयू बेड उपलब्ध हैं, जबकि जिला अस्पताल, शास्त्री अस्पताल रामनगर, महिला अस्पताल और एमसीएच विंग जिला अस्पताल में एक भी आईसीयू बेड नहीं है। इसके परिणामस्वरूप, गंभीर मरीजों को अक्सर बीएचयू रेफर किया जाता है, जिससे वहां पहले से ही अत्यधिक दबाव बना रहता है।
वाराणसी न केवल अपने स्थानीय निवासियों के लिए बल्कि पूर्वांचल के अन्य जिलों, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों से आने वाले मरीजों के लिए भी एक प्रमुख चिकित्सा केंद्र है। रोजाना लगभग 7000 से अधिक मरीज ओपीडी और इमरजेंसी सेवाओं के लिए बीएचयू पहुंचते हैं, जबकि अन्य सरकारी अस्पतालों में भी 5000 से अधिक मरीजों को देखा जाता है। मरीजों के इस भारी दबाव के कारण, गंभीर रोगियों के लिए आईसीयू बेड प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती बन जाता है। बीएचयू के सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक में बने आईसीयू में भी बेड खाली न होने पर मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ता है।
सरकारी अस्पतालों में आईसीयू बेड की कमी के कारण, मरीजों को अक्सर निजी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए मजबूर होना पड़ता है। जहां सरकारी अस्पतालों में आईसीयू में प्रतिदिन औसतन 3-4 हजार रुपये का खर्च आता है, वहीं निजी अस्पतालों में यह खर्च बढ़कर 20-30 हजार रुपये या उससे भी अधिक हो जाता है। यह आर्थिक बोझ दूर-दराज से आने वाले गरीब मरीजों के लिए विशेष रूप से कठिन होता है।
हालांकि, इस स्थिति में सुधार की उम्मीद की जा रही है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. संदीप चौधरी ने बताया कि जिले के सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को आईसीयू न मिलने की समस्या को दूर करने के लिए जिला अस्पताल के पास 150 बेड का क्रिटिकल केयर ब्लॉक बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। उनका मानना है कि इससे मरीजों को बीएचयू में आईसीयू बेड खाली होने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
वहीं, आईएमएस बीएचयू के निदेशक प्रोफेसर एस.एन. संखवार ने स्वीकार किया कि बीएचयू में बच्चों के लिए एनआईसीयू, हृदय रोगियों के लिए सीसीयू और अन्य मरीजों के लिए आईसीयू होने के बावजूद मरीजों का दबाव अत्यधिक रहता है। उन्होंने आश्वासन दिया कि आईसीयू बेड की संख्या बढ़ाने की दिशा में तैयारी चल रही है और जल्द ही बेडों की संख्या में वृद्धि की जाएगी, जिससे मरीजों को राहत मिलेगी।
आंकड़ों पर गौर करें तो, वाराणसी में स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविक स्थिति चिंताजनक है। लाखों की आबादी और पड़ोसी राज्यों से आने वाले मरीजों के भारी दबाव के बावजूद, आईसीयू बेड की संख्या अपर्याप्त है। नए क्रिटिकल केयर ब्लॉक की स्थापना और बीएचयू में बेडों की संख्या में वृद्धि भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत हैं, लेकिन वर्तमान में, वाराणसी में गंभीर रोगियों के लिए बेहतर और सुलभ स्वास्थ्य सुविधाओं की आवश्यकता बनी हुई है।
सरकारी अस्पतालों में आईसीयू बेड की स्थिति: