चटगांव हिल ट्रैक्ट्स में स्वायत्तता की मांग और बंगाली बसाहट समर्थकों की धमकियों से बांग्लादेश सरकार की चिंता
चटगांव हिल ट्रैक्ट्स में स्वायत्तता की मांग और आदिवासियों के खिलाफ उग्र बयानों ने बांग्लादेश सरकार को संकट में डाल दिया है। चटगांव, बलूचिस्तान की तरह बांग्लादेश के लिए एक आंतरिक संकट बन सकता है।

चटगांव हिल ट्रैक्ट्स (CHT), बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में स्थित, एक बार फिर बांग्लादेश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनता दिख रहा है। स्वायत्तता की मांग और आदिवासियों के खिलाफ उग्र बयानों ने यहां के हालात को तनावपूर्ण बना दिया है। यदि समय रहते इसे काबू नहीं किया गया, तो यह क्षेत्र बलूचिस्तान की तरह बांग्लादेश के लिए एक आंतरिक संकट बन सकता है।
10 मई 2025 को यूनाइटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (UPDF) और नेशनल कंसेंसस कमीशन की बैठक हुई, जिसमें मिकेल चकमा ने चटगांव हिल ट्रैक्ट्स के लिए स्वायत्तता की फिर से मांग की। यह मांग दशकों से उठती रही है, लेकिन बांग्लादेश सरकार ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। इस उपेक्षा के कारण अब यह क्षेत्र भी विद्रोही इलाका बनता दिख रहा है, जैसे पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हुआ।
बंगाली बसाहट समर्थकों की धमकियां:
चटगांव हिल ट्रैक्ट्स में बंगाली बसाहट समर्थकों की ओर से हाल ही में एक रैली का आयोजन किया गया, जिसमें खुलेआम आदिवासी समुदायों के खिलाफ भड़काऊ बयान दिए गए। काजी मुजीबुर रहमान, एक बंगाली प्रवासी नेता ने कहा कि:
"हमारी न भाषा मिलती है, न शरीर, न खानपान। हमें तो बहुत पहले इन पर आजादी की लड़ाई छेड़ देनी चाहिए थी।"
इस तरह के बयान न केवल सामाजिक विभाजन को बढ़ा रहे हैं, बल्कि चटगांव को उग्र अलगाववाद की ओर भी धकेल रहे हैं।
बलूचिस्तान और चटगांव: एक जैसी स्थिति
चटगांव हिल ट्रैक्ट्स और बलूचिस्तान के हालात में कई समानताएं हैं। दोनों ही क्षेत्र खनिज, जंगल और जैविक संसाधनों से भरपूर हैं। यहां की स्थानीय आदिवासी आबादी को बाहरी लोगों द्वारा कमजोर किया गया है और उनकी संस्कृति, भाषा और पहचान को दबाया गया है।
बलूचों की तरह ही चकमा, मर्मा और जुम्मा समुदायों की पहचान संकट में है। स्वायत्तता की मांग को दोनों ही क्षेत्रों में राष्ट्रद्रोह के रूप में दबाने की कोशिश की गई, लेकिन इसके परिणाम दोनों देशों के लिए भयावह हो सकते हैं।
यूनुस सरकार की चिंता:
बांग्लादेश की यूनुस सरकार फिलहाल चीन के साथ नजदीकी संबंधों, भारत के खिलाफ बयानबाजी और मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति में व्यस्त है, लेकिन चटगांव हिल ट्रैक्ट्स में बढ़ते तनाव को नजरअंदाज करना बांग्लादेश की स्थिरता के लिए खतरे की घंटी हो सकता है। यदि चटगांव की आग समय रहते नहीं बुझाई गई, तो यह बांग्लादेश के लिए एक अंदरूनी ज्वालामुखी बन सकता है, जो सत्ता को हिला सकता है।
जिस तरह बलूचिस्तान ने पाकिस्तान को दशकों से अशांत कर रखा है, उसी तरह चटगांव भी बांग्लादेश की एकता और स्थिरता के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय संदर्भ:
चटगांव हिल ट्रैक्ट्स में बढ़ती स्वायत्तता की मांग और उग्र बयानों ने बांग्लादेश को एक नई चुनौती दी है, जो अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी ध्यान आकर्षित कर रही है। यदि बांग्लादेश सरकार इस संकट का समाधान नहीं खोज पाई, तो इसे बलूचिस्तान के समान अंतरराष्ट्रीय ध्यान और दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष:
चटगांव हिल ट्रैक्ट्स में उभरती आवाज़ अब केवल आशंका नहीं बल्कि एक संभावित हकीकत बन चुकी है। बांग्लादेश सरकार के लिए यह चेतावनी है कि यदि समय रहते चटगांव के हालात पर काबू नहीं पाया गया, तो यह देश की एकता और स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है। बलूचिस्तान जैसे मामलों से बांग्लादेश को सबक लेने की जरूरत है, ताकि उसे इस संकट से बचा जा सके।