पाकिस्तान को खुलकर समर्थन देने वाले तुर्की के खिलाफ भारत में आम लोगों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच भले ही हवाई संग्राम थम गया हो, लेकिन तुर्की के रवैये से नाराज भारतीयों ने अब आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार का बिगुल फूंक दिया है। इसी कड़ी में, देश की दो प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी - जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) और जामिया मिल्लिया इस्लामिया (JMI) ने भी तुर्की की शैक्षणिक संस्थाओं के साथ अपने समझौते तोड़ दिए हैं।
बीते दिन JNU ने तुर्की की इनोनू यूनिवर्सिटी के साथ अपने समझौते को रद्द कर दिया था। इस फैसले पर JNU की कुलपति शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने खुलकर अपनी राय रखी। उन्होंने साफ कहा कि भारत के टैक्सपेयर्स के पैसे से चलने वाली JNU हमेशा देश के साथ खड़ी है। उन्होंने गर्व से कहा कि JNU के फैकल्टी और छात्र सभी राष्ट्रवादी हैं और भारतीय सशस्त्र बलों के कई बड़े अधिकारी, आर्मी चीफ और नेवल चीफ JNU के ही पूर्व छात्र रहे हैं, जिन पर उन्हें गर्व है। कुलपति ने जोर देकर कहा कि देश के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह देश की सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहे। उन्होंने यह भी बताया कि देश के कमीशन्ड अधिकारियों को JNU की तरफ से ही डिग्री मिलती है।
कुलपति शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने बताया कि JNU ने इस साल फरवरी में ही तुर्की की इनोनू यूनिवर्सिटी के साथ छात्र विनिमय (स्टूडेंट एक्सचेंज) को लेकर समझौता किया था, लेकिन अब राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस समझौते को रद्द करने का फैसला लिया गया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जिस तुर्की की भारत ने हमेशा मदद की, वह आज भारत के विरोधियों का साथ दे रहा है, जो अस्वीकार्य है।
JNU कुलपति ने वर्तमान भारत को 'विकसित भारत' और 'नया भारत' बताते हुए कहा कि अब भारत वो देश है जो किसी भी चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देना जानता है। 'ऑपरेशन सिंदूर' का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय सेना ने जिस शौर्य और साहस का परिचय दिया है, वह अभूतपूर्व है और इसने दुनिया को दिखा दिया है कि भारत क्या कर सकता है।
JNU के बाद अब जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने भी तुर्की सरकार से जुड़े शैक्षणिक संस्थानों के साथ अपने सभी समझौतों को रद्द कर दिया है। जामिया प्रशासन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जामिया का हर छात्र और फैकल्टी भारत और देश की सेना के साथ मजबूती से खड़ा है।
इन दोनों प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों द्वारा उठाए गए इस कदम से साफ जाहिर है कि आम भारतीय अब पाकिस्तान के मददगारों को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं। यह सिर्फ आर्थिक या सामाजिक बहिष्कार नहीं है, बल्कि देश की संप्रभुता और सुरक्षा के साथ खड़े रहने का एक मजबूत संदेश भी है।