पूर्णम की अनकही पीड़ा: सीमा पर फंसा जवान, गर्भवती पत्नी की बेबसी और मीडिया की चुप्पी

तीन हफ्ते से BSF जवान पूर्णम साहू पाकिस्तान की हिरासत में हैं। गर्भवती पत्नी रजनी की बेबसी और मीडिया की चुप्पी पर एक मार्मिक लेख

पूर्णम की अनकही पीड़ा: सीमा पर फंसा जवान, गर्भवती पत्नी की बेबसी और मीडिया की चुप्पी

तीन हफ़्ते... तीन हफ़्ते एक लंबा समय होता है, खासकर तब जब आपका अपना, आपका जीवनसाथी, सरहदों के उस पार किसी अनजान हिरासत में हो। बीएसएफ के जवान पूर्णम साहू के साथ यही दुखद सच्चाई जुड़ी हुई है। तीन हफ्ते पहले, पंजाब के फिरोजपुर में किसानों के एक समूह की निगरानी करते हुए, पूर्णम अनजाने में सीमा पार कर गए। तब से, वह पाकिस्तान रेंजर्स की हिरासत में हैं, और उनकी घर वापसी की राह अनिश्चित बनी हुई है।

इस मुश्किल घड़ी में, पूर्णम की पत्नी रजनी एक और बड़ी चुनौती का सामना कर रही हैं - वह गर्भवती हैं। उनके भीतर पल रहा जीवन, अपने पिता की सुरक्षित वापसी की राह देख रहा होगा। कल्पना कीजिए उस मां के दिल पर क्या बीत रही होगी, जिसका पति सीमा के उस पार है और वह खुद अपने आने वाले बच्चे की चिंता में डूबी हुई है। एक तरफ पति की सलामती की दुआ, तो दूसरी तरफ अपने गर्भ में पल रहे बच्चे के भविष्य की फिक्र - यह बोझ किसी भी इंसान को तोड़ कर रख देने के लिए काफी है।

रजनी की पीड़ा सिर्फ अपने पति से दूर रहने की नहीं है। वह एक ऐसे अंधेरे में जी रही हैं, जहां उसे यह भी नहीं पता कि पूर्णम ठीक हैं या नहीं, कब वह वापस आएंगे, या क्या उन्हें कभी वापस आने दिया जाएगा। हर गुजरता दिन उनकी उम्मीदों को धुंधला करता जा रहा होगा, हर रात अनगिनत आशंकाओं के साथ गुजरती होगी।

लेकिन इस दुखद कहानी का एक और पहलू है, जो उतना ही परेशान करने वाला है - मीडिया की चुप्पी। यह विडंबना ही है कि जिस देश में छोटी से छोटी खबर भी ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती है, वहां एक जवान जो देश की सेवा करते हुए अनजाने में सीमा पार कर गया, उसकी खबर धीरे-धीरे मीडिया की सुर्खियों से गायब होती जा रही है। तमाम न्यूज़ चैनलों पर अन्य विषयों पर घंटों बहस हो सकती है, लेकिन पूर्णम साहू की व्यथा और उनके परिवार का दर्द शायद 'खबर' बनने लायक नहीं समझा जा रहा।

यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। क्या एक जवान की जान और उसके परिवार की पीड़ा इतनी आसानी से भुला दी जानी चाहिए? क्या सीमा पर तैनात हमारे রক্ষাকর্তা के साथ होने वाली किसी भी अनहोनी को हम इतनी बेरुखी से नजरअंदाज कर सकते हैं? यह सोचने वाली बात है कि अगर पूर्णम किसी बड़े शहर के होते या उनका कोई राजनीतिक कनेक्शन होता, तो क्या तब भी मीडिया का रवैया इतना ही उदासीन रहता?

पूर्णम साहू, किसी गुमनाम गांव का एक आम नागरिक हो सकता है, लेकिन वह एक सैनिक है, जिसने अपनी जान हथेली पर रखकर देश की सीमाओं की रक्षा करने की शपथ ली है। उनका अनजाने में सीमा पार कर जाना एक मानवीय भूल हो सकती है, लेकिन इसके लिए उन्हें और उनके परिवार को इस तरह अनिश्चितता के अंधेरे में छोड़ देना क्या उचित है?

यह खबर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों की जटिलता को दर्शाती है। एक तरफ, दोनों देशों के बीच तनाव कम करने की बातें होती हैं, वहीं दूसरी तरफ, एक गलती से सीमा पार कर जाने वाले जवान को भी वापस भेजने में इतना लंबा समय लग रहा है। यह घटना दिखाती है कि जमीनी स्तर पर हालात कितने नाजुक और अविश्वास से भरे हुए हैं।

पूर्णम की पत्नी रजनी अब इंसाफ के लिए गुहार लगा रही हैं। उनकी आंखों में अपने पति को वापस देखने की आस है, और अपने आने वाले बच्चे के लिए एक सुरक्षित भविष्य की उम्मीद। उन्होंने मीडिया से भी शायद उम्मीद छोड दी होगी, लेकिन एक नागरिक के तौर पर हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम इस आवाज को बुलंद करें। पूर्णम साहू को वापस लाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना हम सभी की जिम्मेदारी है।

यह सिर्फ एक जवान की वापसी का मामला नहीं है, यह हमारी मानवीय संवेदनाओं और राष्ट्रीय कर्तव्य का भी प्रश्न है। हमें यह याद रखना होगा कि सीमा पर तैनात हर जवान के पीछे एक परिवार है, जो उनकी सलामती की दुआ करता है। पूर्णम की गर्भवती पत्नी की बेबसी और उनके सात साल के बच्चे की अपने पिता के लिए व्याकुलता को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

वाराणसी, जो भारत की आध्यात्मिक राजधानी है, इस दुख की घड़ी में पूर्णम और उनके परिवार के साथ खड़ा होना चाहिए। यहां की गंगा की पवित्रता और लोगों की करुणा इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने में मदद कर सकती है। हमें अपनी आवाज को एकजुट करना होगा ताकि दिल्ली में बैठे हुक्मरानों तक पूर्णम की पत्नी की पुकार पहुंचे और उन्हें अपने पति को सुरक्षित वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास करने के लिए मजबूर किया जा सके।

यह खबर मीडिया के लिए भी एक सबक है। सच्ची पत्रकारिता सिर्फ सनसनीखेज खबरों को दिखाना नहीं है, बल्कि उन आवाजों को भी उठाना है जो अनसुनी रह जाती हैं। पूर्णम साहू की कहानी एक ऐसी ही अनसुनी आवाज है, जिसे 'संपन्न भारत न्यूज़' जैसे मंचों को उठाना चाहिए ताकि यह देश के हर कोने तक पहुंचे और सरकार को कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करे।

तीन हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन पूर्णम की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। उनकी पत्नी का संघर्ष जारी है, और हमें उनके इस संघर्ष में उनका साथ देना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पूर्णम साहू जल्द ही अपने घर लौटें, अपनी गर्भवती पत्नी और अपने बच्चे से मिलें, और उन्हें यह महसूस हो कि देश उनके साथ खड़ा है। जय हिंद।