शुभांशु शुक्ला: अंतरिक्ष में भारत का नया सितारा, Axiom-4 मिशन के लिए तैयार
भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में इतिहास रचने को तैयार हैं। Axiom-4 मिशन के तहत वे अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन की यात्रा करेंगे, जिससे वे राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय बन जाएंगे।

शुभांशु शुक्ला और एक्जियोम-4 क्रू के अन्य सदस्य
भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक नया अध्याय जुड़ने वाला है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में जाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। वे 29 मई 2025 को Axiom-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की यात्रा पर निकलेंगे। यह मिशन न केवल तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में तेजी से बढ़ती भागीदारी को भी दर्शाता है।
शुभांशु शुक्ला, जो भारतीय वायु सेना के पायलट रह चुके हैं, राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय बन जाएंगे। साथ ही वे पहले भारतीय होंगे जो ISS पर कदम रखेंगे।
प्रशिक्षण और चयन की कहानी
शुभांशु शुक्ला को 2019 में ISRO के गगनयान मिशन के लिए चुना गया था। इसके तहत उन्होंने रूस के यूरी गागरिन कोस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में कठोर प्रशिक्षण प्राप्त किया और फिर बेंगलुरु स्थित ISRO के प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स में भारत की तरफ से एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग पूरी की।
इसके बाद वे अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्पेसएक्स द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हुए, जहां उन्होंने मॉक ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में असली अंतरिक्ष सूट पहनकर पूरी तरह वास्तविक परिस्थितियों में अभ्यास किया। यह वह स्पेसक्राफ्ट है जिसमें वे अंतरिक्ष की यात्रा करेंगे।
Axiom-4 मिशन: भारत के लिए एक बड़ा कदम
Axiom-4 मिशन को तीन बड़ी संस्थाओं — नासा, स्पेसएक्स और इसरो — के सहयोग से संचालित किया जा रहा है। मिशन की लॉन्चिंग नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से 29 मई की रात 10:33 बजे की जाएगी, जिसमें चार अंतरिक्ष यात्री सवार होंगे:
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पेगी व्हिट्सन (कमांडर, NASA)
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स्वोस्ज विनिस्की (पोलैंड)
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टिबोर कापू (हंगरी)
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शुभांशु शुक्ला (भारत)
इस मिशन की कुल अवधि 14 दिन की होगी, और इसके दौरान अंतरिक्ष यात्री अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों में हिस्सा लेंगे।
भारतीय अनुसंधान को मिलेगा वैश्विक मंच
Axiom-4 मिशन में शुभांशु शुक्ला सात महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग अंतरिक्ष में करेंगे, जो भारत में विकसित किए गए हैं। इनमें शामिल हैं:
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मस्तिष्क पर स्क्रीन के प्रभावों का अध्ययन
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माइक्रोबियल एडेप्टेशन (सूक्ष्म जीवों का अंतरिक्ष में व्यवहार)
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मसल एट्रोफी (अंतरिक्ष में मांसपेशियों की कमजोरी)
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माइक्रोग्रैविटी में फसलों की प्रतिरोधक क्षमता
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भारतीय योग और सांस तकनीकों का प्रभाव
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मानव व्यवहार पर माइक्रोग्रैविटी के मनोवैज्ञानिक असर
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सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में मेडिकल तकनीक की व्यवहार्यता
ये प्रयोग भारतीय वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा डिजाइन किए गए हैं और अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत की बढ़ती विशेषज्ञता को दर्शाते हैं।
अंतरिक्ष में भारतीय संस्कृति की छवि
शुभांशु शुक्ला का यह मिशन सिर्फ वैज्ञानिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण होगा। वे ISS पर भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करेंगे। सूत्रों के अनुसार, वे वहां योग, प्राणायाम और भारतीय भोजन के कुछ तत्वों को प्रस्तुत करने की योजना में हैं। यह भारत की सॉफ्ट पावर और संस्कृति को अंतरिक्ष तक पहुंचाने की दिशा में एक अनूठा प्रयास होगा।
गगनयान मिशन की तैयारी में मील का पत्थर
ISRO ने स्पष्ट किया है कि शुभांशु शुक्ला की यह अंतरिक्ष यात्रा गगनयान मिशन की तैयारी में निर्णायक भूमिका निभाएगी। यह पहला अवसर होगा जब कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री व्यावसायिक निजी मिशन पर ISS जाएगा, जिससे ISRO को लाइव अंतरिक्ष स्थितियों में भारतीय अनुसंधान की गुणवत्ता और विश्वसनीयता का मूल्यांकन करने का मौका मिलेगा।
इसरो का गगनयान मिशन भारत का पहला स्वदेशी मानव अंतरिक्ष मिशन होगा, जिसमें चार अंतरिक्षयात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में भेजा जाएगा। शुभांशु का अनुभव इस मिशन की योजना और क्रियान्वयन में निर्णायक रहेगा।
राकेश शर्मा के बाद भारत का गौरव
1984 में राकेश शर्मा सोवियत संघ के Soyuz T-11 मिशन के तहत अंतरिक्ष में गए थे और आज भी वे भारतीय अंतरिक्ष इतिहास का एक चमकता सितारा हैं। अब, 41 साल बाद, शुभांशु शुक्ला भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री बनेंगे और एक बार फिर भारत को वैश्विक अंतरिक्ष मानचित्र पर उभारेंगे।
वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका
Axiom-4 जैसे मिशन अंतरिक्ष में भारत की बढ़ती भागीदारी और तकनीकी श्रेष्ठता को रेखांकित करते हैं। न केवल वैज्ञानिक, बल्कि कूटनीतिक दृष्टिकोण से भी यह मिशन महत्वपूर्ण है। अमेरिका, यूरोप और भारत जैसे देशों का यह सहयोग अंतरिक्ष में साझेदारी के एक नए युग की शुरुआत करता है।
निष्कर्ष
शुभांशु शुक्ला की यह ऐतिहासिक उड़ान भारत के लिए गर्व की बात है। यह सिर्फ एक अंतरिक्ष यात्रा नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और वैश्विक छवि का प्रतीक बन गई है। जैसे-जैसे 29 मई की तारीख नजदीक आ रही है, पूरे देश की नजरें आकाश की ओर टिकी हैं, जहां एक भारतीय फिर से अंतरिक्ष में अपना परचम लहराने वाला है।