सऊदी-अमेरिका डील: ट्रंप की वापसी से 141 अरब डॉलर की डिफेंस डील, रिश्तों में फिर आई गर्मी

डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की पहली विदेश यात्रा में सऊदी अरब से 141 अरब डॉलर की डिफेंस डील हुई। जानिए क्यों ट्रंप के आने से फिर गर्म हुए सऊदी-अमेरिका रिश्ते और बाइडेन के कार्यकाल में क्यों आई थी खटास।

सऊदी-अमेरिका डील: ट्रंप की वापसी से 141 अरब डॉलर की डिफेंस डील, रिश्तों में फिर आई गर्मी

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत जिस देश की यात्रा से की है, वह कोई और नहीं बल्कि सऊदी अरब है। 13 मई 2025 को ट्रंप ने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात कर 141 बिलियन डॉलर की विशाल रक्षा डील पर हस्ताक्षर किए। यह डील न केवल हथियारों की आपूर्ति से जुड़ी है बल्कि तकनीकी सहायता, सैन्य आधुनिकीकरण और सामरिक साझेदारी को और मजबूत करने की दिशा में एक निर्णायक कदम है।

व्हाइट हाउस ने इस सौदे को अब तक की "सबसे बड़ी डिफेंस डील" करार दिया है। सवाल उठता है कि आखिर ट्रंप और बिन सलमान के रिश्ते में वह कौन-सा तत्व है जो रिश्तों को इतना मजबूत बनाता है, जबकि जो बाइडेन के दौर में यही समीकरण फीके नज़र आए?


95 वर्षों पुराना रिश्ता: तेल के बदले सुरक्षा

सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्तों की नींव 1930 के दशक में तब पड़ी थी जब सऊदी धरती पर तेल खोजा गया और अमेरिका ने उसे रणनीतिक साझेदार मानना शुरू किया। 1945 में सऊदी राजा अब्दुल अज़ीज़ और अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट की मुलाकात हुई, जिसने एक ऐतिहासिक समझौते को जन्म दिया—"तेल के बदले सुरक्षा"।

इस समझौते के तहत अमेरिका सऊदी को सैन्य सुरक्षा और हथियार देता रहा और बदले में सऊदी अरब ने अमेरिका को तेल की आपूर्ति सुनिश्चित की। यह रिश्ता समय के साथ और प्रगाढ़ होता गया।


ट्रंप का रणनीतिक रुख: व्यापार और सामरिक साझेदारी

ट्रंप जब 2017 में पहली बार राष्ट्रपति बने थे, तब भी उनकी पहली विदेश यात्रा सऊदी अरब ही थी। उस समय 110 बिलियन डॉलर की डील हुई थी, जिसने दोनों देशों के बीच व्यापार और कूटनीतिक गर्मी को नया आयाम दिया।

अब जब ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बने हैं, उन्होंने फिर से वही कूटनीतिक परंपरा निभाई और सऊदी दौरे के साथ एक और बड़ी डील कर दी। इसके अंतर्गत अमेरिका सऊदी अरब को आधुनिक लड़ाकू विमान, मिसाइल सुरक्षा प्रणाली, नौसैनिक तकनीक और साइबर सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराएगा।


बाइडेन युग: क्यों ठंडे पड़े थे रिश्ते?

जो बाइडेन के कार्यकाल में सऊदी-अमेरिका रिश्तों में खटास तब आई जब 2018 में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मामले में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने सऊदी शासन को जिम्मेदार ठहराया। बाइडेन प्रशासन ने इस मुद्दे पर सार्वजनिक आलोचना की, और यमन युद्ध में हथियारों की आपूर्ति पर भी रोक लगा दी।

तेल संकट के दौरान भी सऊदी ने अमेरिका की उत्पादन बढ़ाने की गुजारिश को अनदेखा कर दिया, जिससे नाराज होकर बाइडेन ने ‘परिणाम भुगतने’ की चेतावनी दी। लेकिन व्यापारिक और सामरिक हितों को देखते हुए 2022 में उन्हें सऊदी दौरा करना पड़ा।


चीन की सक्रियता और अमेरिका की चिंता

मार्च 2023 में चीन ने सऊदी और ईरान के बीच मध्यस्थता की कोशिश कर अमेरिका को चौंका दिया। यह पहल अमेरिका के लिए खतरे की घंटी थी क्योंकि गल्फ क्षेत्र को वह अपना परंपरागत प्रभाव क्षेत्र मानता है। इसके बाद अमेरिका ने तत्काल सऊदी से रिश्तों को सुधारने की मुहिम छेड़ी।

सऊदी के विजन 2030 के अंतर्गत अमेरिका की कई कंपनियों को निवेश के मौके दिए गए, जिससे आर्थिक समीकरण फिर अमेरिका की ओर झुकते दिखे।


ट्रंप-बिन सलमान समीकरण: आपसी जरूरत और निजी समझदारी

डोनाल्ड ट्रंप और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच निजी स्तर पर भी गहरी समझदारी मानी जाती है। ट्रंप मूलतः व्यापारी पृष्ठभूमि से हैं और राजनीति को भी व्यावसायिक दृष्टिकोण से देखते हैं। वे खुले तौर पर रक्षा उपकरण बेचने, निवेश आकर्षित करने और सामरिक हित साधने की बात करते हैं।

वहीं, बिन सलमान अपने देश की तेल पर निर्भरता को कम कर टेक्नोलॉजी, शिक्षा और बुनियादी ढांचे में विविधीकरण के इच्छुक हैं। अमेरिका इसके लिए स्वाभाविक साझेदार बनता है।


डील के मुख्य बिंदु: क्या मिला, क्या दिया?

नई 141 अरब डॉलर की डील में निम्नलिखित पहलुओं को प्रमुखता दी गई है:

  • वायु रक्षा और मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति

  • आधुनिक फाइटर जेट और ड्रोन सिस्टम

  • समुद्री सुरक्षा तकनीक और रडार प्रणाली

  • सीमा सुरक्षा और सैन्य प्रशिक्षण

  • साइबर सुरक्षा और सूचना प्रबंधन प्रणालियाँ

  • अंतरिक्ष निगरानी एवं उपग्रह डेटा साझाकरण


इजरायल की अनुपस्थिति और संकेत

इस दौरे में ट्रंप इजरायल नहीं गए, जो कि पारंपरिक रूप से हर अमेरिकी राष्ट्रपति की मिडिल ईस्ट यात्रा का हिस्सा होता है। इसके पीछे दो कारण बताए जा रहे हैं:

  1. इजरायल-गाज़ा युद्ध को लेकर अमेरिका के रवैये पर अंतरराष्ट्रीय दबाव।

  2. ट्रंप का सऊदी, कतर और यूएई के जरिए इजरायल पर परोक्ष दबाव बनाना।

इससे यह संकेत मिलता है कि ट्रंप क्षेत्र में संतुलन की नई कूटनीति अपना रहे हैं।


निष्कर्ष: सामरिक दोस्ती का नया अध्याय

अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्ते धार्मिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और व्यावसायिक हैं। अमेरिका को तेल, भू-सामरिक सहयोग और क्षेत्रीय प्रभुत्व की जरूरत है, वहीं सऊदी अरब को तकनीक, सुरक्षा और निवेश की।

डोनाल्ड ट्रंप की यह यात्रा दर्शाती है कि वैश्विक कूटनीति में दोस्ती से ज्यादा अहम भूमिका "स्वार्थ आधारित साझेदारी" निभाती है। और यही कारण है कि सऊदी अरब जैसे देश, जिन्हें कभी अमेरिका ने मानवाधिकारों पर घेरा था, आज उसके सबसे बड़े रक्षा साझेदार बनते जा रहे हैं।