यूक्रेन के बाद पुतिन का अगला निशाना? बाल्टिक सागर में रूसी सैन्य अभ्यास, सुवालकी कॉरिडोर पर मंडराता खतरा
यूक्रेन युद्ध के बीच, रूस ने बाल्टिक सागर में बड़ा सैन्य अभ्यास शुरू किया है, जिसमें 20 से अधिक युद्धपोत और 3,000 सैनिक शामिल हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि रूस का अगला लक्ष्य सुवालकी कॉरिडोर हो सकता है, खासकर यूक्रेन में हार की स्थिति में।

यूक्रेन में जारी तनाव के बीच, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अब एक और संभावित सैन्य टकराव की तैयारी करते दिख रहे हैं। खबरों के अनुसार, रूस ने 27 मई से बाल्टिक सागर में एक व्यापक सैन्य अभ्यास शुरू किया है। इस युद्धाभ्यास में रूस के 20 से अधिक युद्धपोत, नौकाएं और सहायक पोत शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, लगभग 3,000 सैनिक और 25 विमान व हेलिकॉप्टर भी इस अभ्यास का हिस्सा हैं। इस बार रूसी नौसेना का विशेष ध्यान बिना पायलट वाले ड्रोन (UAV) और नौकाओं से निपटने की रणनीति पर केंद्रित है।
इस घटनाक्रम के बीच, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने एक गंभीर चेतावनी जारी की है। एजेंसियों के अनुसार, रूस निकट भविष्य में सुवालकी कॉरिडोर को अपना अगला निशाना बना सकता है। उनका मानना है कि यदि यूक्रेन में रूस को कोई बड़ी सैन्य हार का सामना करना पड़ता है, तो वह ध्यान भटकाने या रणनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस महत्वपूर्ण कॉरिडोर पर हमला कर सकता है।
जर्मनी द्वारा हाल ही में यूक्रेन को हथियार भेजने की घोषणा ने इस क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा दिया है। अमेरिकी खुफिया सूत्रों के अनुसार, इस कदम से रूस की नाराजगी और उसकी संभावित सैन्य रणनीति दोनों में और तेज़ी आई है। यही कारण है कि अब सुवालकी कॉरिडोर पर खतरे की घंटी पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ सुनाई दे रही है।
सुवालकी कॉरिडोर एक संकरी ज़मीनी पट्टी है, जो पोलैंड और लिथुआनिया के बीच स्थित है। इसकी कुल लंबाई लगभग 65 किलोमीटर है। यह सामरिक रूप से महत्वपूर्ण पट्टी रूस के कैलिनिनग्राद क्षेत्र और बेलारूस को आपस में जोड़ने वाला सबसे छोटा और सीधा ज़मीनी मार्ग है।
इस कॉरिडोर का सामरिक महत्व इसलिए अत्यधिक है क्योंकि यही बाल्टिक देशों - एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया - को शेष यूरोप और नाटो (NATO) देशों से जोड़ने वाला एकमात्र भूमि मार्ग है। यदि रूस और बेलारूस मिलकर इस पर नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं, तो इन तीनों बाल्टिक देशों का बाकी नाटो देशों से ज़मीनी संपर्क पूरी तरह से टूट सकता है। ऐसी स्थिति न केवल इन देशों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करेगी, बल्कि नाटो के सामने भी एक बड़ा सामरिक संकट खड़ा हो जाएगा, जिससे क्षेत्र में व्यापक अस्थिरता फैल सकती है।