सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दिल्ली डियर पार्क से हिरणों के स्थानांतरण पर लगी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने हौज खास स्थित डियर पार्क से हिरणों को अन्य राज्यों में स्थानांतरित करने पर रोक लगाई है, जिससे वन्यजीव संरक्षण और पशु अधिकारों से जुड़े गंभीर मुद्दों को बल मिला है।

भारत का सर्वोच्च न्यायालय न केवल संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि वह पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण को लेकर भी समय-समय पर प्रभावी हस्तक्षेप करता है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक आदेश हाल ही में आया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के हौज खास स्थित डियर पार्क से हिरणों को अन्य राज्यों में स्थानांतरित करने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।
यह निर्णय न केवल हिरणों की सुरक्षा और कल्याण के लिए अहम है, बल्कि यह देश भर में वन्यजीवों के साथ मानवीय व्यवहार और कानूनी प्रक्रियाओं के पालन की दिशा में भी एक मजबूत संदेश देता है।
याचिका की पृष्ठभूमि
यह मामला तब प्रकाश में आया जब न्यू दिल्ली नेचर सोसाइटी, एक गैर सरकारी संगठन, ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर डियर पार्क से हिरणों के संभावित स्थानांतरण पर आपत्ति जताई। याचिका में कहा गया कि लगभग 600 हिरणों को बिना किसी वैज्ञानिक आकलन, पशु चिकित्सा परीक्षण या विशेष देखभाल की योजना के अन्य राज्यों में स्थानांतरित करने की योजना बनाई जा रही है।
एनजीओ का तर्क था कि इस प्रक्रिया में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का उल्लंघन हो रहा है, और विशेष रूप से गर्भवती हिरणों व नवजातों जैसे कमजोर वर्गों के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं किए गए हैं। यह भी उल्लेख किया गया कि हिरणों के तीन समूहों को पहले ही जल्दबाजी में राजस्थान के अभयारण्यों में भेजा जा चुका है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी और निर्देश
30 अप्रैल 2025 को पारित अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां शामिल थे, ने डियर पार्क से हिरणों के किसी भी तरह के स्थानांतरण पर रोक लगा दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “जब तक अगला आदेश नहीं आता, हिरणों को स्थानांतरित नहीं किया जाएगा और उनकी उचित देखभाल सुनिश्चित की जाएगी।”
इसके साथ ही अदालत ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और अन्य संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए 16 मई तक जवाब देने को कहा है। विशेष रूप से डीडीए के बागवानी निदेशक से विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है कि हिरणों को स्थानांतरित करने की योजना कैसे बनाई गई थी और क्या उसमें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का पालन हुआ।
हिरणों का जीवन और मानव हस्तक्षेप
डियर पार्क वर्षों से दिल्लीवासियों और पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक शांति स्थल रहा है। यहां हिरणों की बड़ी आबादी है, जो एक सीमित क्षेत्र में रहती है। हालांकि समय-समय पर यह बहस होती रही है कि शहरी क्षेत्रों में जंगली जानवरों को रखना नैतिक और व्यवहारिक रूप से कितना सही है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इस बात की ओर इशारा करता है कि स्थानांतरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता, वैज्ञानिक अध्ययन, और संवेदनशीलता बेहद जरूरी है, अन्यथा यह जीवों के जीवन के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
पर्यावरण विशेषज्ञ और पशु कल्याण कार्यकर्ता इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि जानवरों को स्थानांतरित करने से पहले उनकी अनुकूलन क्षमता, नई जगह की पारिस्थितिकी, भोजन उपलब्धता और सुरक्षा जैसे पहलुओं का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक होता है।
प्रोफेसर संजय बिष्ट (वन्यजीव विज्ञान) के अनुसार, “यदि बिना किसी पूर्व तैयारी के हिरणों को एक नए पर्यावरण में भेजा जाता है, तो वे न केवल तनाव का शिकार हो सकते हैं, बल्कि उनमें से कई जीवित भी नहीं रह पाते।”
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन?
न्यू दिल्ली नेचर सोसाइटी की याचिका का एक बड़ा आधार यह भी था कि डियर पार्क से हिरणों को स्थानांतरित करना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के कई प्रावधानों का सीधा उल्लंघन है। विशेष रूप से, अधिनियम के तहत किसी भी संरक्षित जानवर को उसकी प्राकृतिक या कृत्रिम निवास से हटाने के लिए मुख्य वन्यजीव वार्डन की अनुमति अनिवार्य है, साथ ही पर्यावरण मंत्रालय की भी स्वीकृति आवश्यक होती है।
यदि डीडीए या अन्य एजेंसियों ने बिना इन प्रक्रियाओं को अपनाए हिरणों को स्थानांतरित किया, तो यह न केवल असंवेदनशीलता बल्कि गैरकानूनी कदम भी होगा।
क्या है आगे की राह?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 16 मई को अगली सुनवाई के लिए तारीख निर्धारित की गई है, जिसमें संबंधित प्राधिकरणों से विस्तृत जवाब मांगे गए हैं। यह सुनवाई तय करेगी कि हिरणों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया जारी रह सकती है या इस पर स्थायी रोक लगाई जाएगी।
इस बीच, कोर्ट ने यह भी निर्देशित किया है कि डियर पार्क में मौजूद सभी हिरणों की उचित चिकित्सा जांच और देखभाल की जाए, जिससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
जनता की भूमिका और संवेदनशीलता
इस पूरे मामले में यह स्पष्ट हुआ है कि आम जनता और एनजीओ की सतर्कता से बड़े स्तर पर जीवों के जीवन की रक्षा हो सकती है। दिल्ली में रहने वाले हजारों लोगों के लिए डियर पार्क न केवल एक सैरगाह है, बल्कि यह शहरी जैव विविधता का प्रतीक भी है। ऐसे में हिरणों के साथ मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करना प्रत्येक नागरिक की भी जिम्मेदारी बनती है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश भारत में वन्यजीवों के अधिकारों और संरक्षण की दिशा में एक मजबूत कदम माना जा सकता है। यह न केवल डियर पार्क के हिरणों के लिए राहत का कारण बना है, बल्कि यह उन सभी प्रशासनिक इकाइयों के लिए चेतावनी भी है जो बिना वैज्ञानिक आकलन और कानूनी प्रक्रिया के ऐसे संवेदनशील निर्णय लेते हैं।
आगामी सुनवाई में अदालत क्या फैसला लेती है, यह तो समय बताएगा, लेकिन फिलहाल देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने यह साफ कर दिया है कि जीव-जंतुओं के जीवन से जुड़ा कोई भी निर्णय जल्दबाज़ी या गैरकानूनी तरीके से नहीं लिया जा सकता।