उत्तराखंड की 'फूलों की घाटी': जमीन पर जन्नत, संजीवनी बूटी का घर और प्रकृति का अद्भुत करिश्मा!

उत्तराखंड के चमोली में स्थित फूलों की घाटी एक बेहद आकर्षक पर्यटन स्थल है, जिसे 'जमीन पर जन्नत' कहा जाता है। इसकी पौराणिक मान्यताएं, खोज का इतिहास और नंदा देवी बायोस्फीयर का हिस्सा होने के कारण यह प्रकृति प्रेमियों और श्रद्धालुओं के लिए एक अनूठा अनुभव प्रदान करती है।

उत्तराखंड की 'फूलों की घाटी': जमीन पर जन्नत, संजीवनी बूटी का घर और प्रकृति का अद्भुत करिश्मा!
फूलों की घाटी

उत्तराखंड के चमोली जोशीमठ में स्थित फूलों की घाटी (Valley of Flowers) बेहद आकर्षक है, जो जमीन पर जन्नत की तरह प्रतीत होती है। इसे देखने के लिए हर साल हजारों पर्यटक यहां आते हैं। यहां पहुंचने के लिए पर्यटकों को गोविंद घाट से 16 किलोमीटर लंबे ट्रैक को पैदल पार करना होता है, क्योंकि गोविंद घाट से आगे गाड़ी नहीं जाती। जहां एक ओर इस घाटी में पाई जाने वाली फूलों की सैकड़ों प्रजातियां लोगों को अपनी ओर खींचती हैं, वहीं इसकी कई पौराणिक मान्यताएं भी हैं।

फूलों की घाटी को लेकर कहा जाता है कि इसका जिक्र रामायण और महाभारत में भी किया गया है। धार्मिक मान्यता है कि इसी घाटी से भगवान हनुमान जी, लक्ष्मण जी को बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाए थे। यहां रहने वाले लोग इस घाटी को परियों और देवताओं का निवास स्थान मानते हैं। यह फूलों की घाटी नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के अंदर स्थित है और नंदा देवी को गढ़वाल और कुमाऊं की संरक्षक देवी माना जाता है।


कैसे हुई इस घाटी की खोज?

इस क्षेत्र का हिंदू पौराणिक कथाओं में भी काफी महत्व है और यहां भोटिया नामक स्थानीय जनजाति रहती है। लेकिन वेस्टर्न वर्ल्ड ने 1931 में इस घाटी की खोज की थी। जब माउंट कामेट से लौट रहे तीन ब्रिटिश पर्वतारोही, फ्रैंक एस स्मिथ, एरिक शिप्टन और आरएल होल्ड्सवर्थ अपना रास्ता भूल गए थे और यहां आ गए थे। उन्होंने ही इस घाटी को 'फूलों की घाटी' (Flower of Valley) नाम दिया। इसके बाद स्मिथ ने 'फूलों की घाटी' नाम की एक किताब भी लिखी, जो 1938 में, 8 साल बाद, प्रकाशित हुई।


नंदा देवी बायोस्फीयर की स्थापना

1962 में भारत-चीन युद्ध की वजह से भारत और तिब्बत के बीच की सीमा बंद हो गई थी। लेकिन 1974 में नंदा देवी को एक बार फिर से पर्वतारोहण (mountaineering) के लिए खोल दिया गया। हालांकि, 1982 में इस क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया, और इसके साथ ही पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया। फिर नंदा देवी बायोस्फीयर की स्थापना 1988 में की गई और धीरे-धीरे पर्यटन को फिर से खोला गया।


कैसे पहुँचें और आस-पास के आकर्षण

इस फूलों की घाटी पर जाने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून में जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है। वहीं अगर आप ट्रेन से इस घाटी पर जाना चाहते हैं, तो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यहां से गोविंद घाट तक गाड़ी से पहुंचा जा सकता है और उसके बाद 16 किलोमीटर की पैदल ट्रेकिंग कर फूलों की घाटी स्थित है।

इसके पास ही स्थित अन्य आकर्षणों में हेमकुंड साहिब भी शामिल है, जो सिखों का एक पवित्र तीर्थ स्थल है। माना जाता है कि 10वें सिख गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने 10 सालों तक यहां ध्यान किया था। इसके बाद जोशीमठ का पवित्र शहर है, जहां बद्रीनाथ मंदिर से भगवान बद्री को सर्दियों के लिए लाया जाता है। फूलों की घाटी प्रकृति, आध्यात्मिकता और रोमांच का एक अनूठा संगम है, जो हर यात्री को एक अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करती है।